नगर निकाय चुनाव परिणाम और भाजपा के लहराए परचम पर विशेष
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??सुप्रभात-सम्पादकीय??
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साथियों-:
======आखिरकार नगर निकायों के चुनाव सकुशल समाप्त हो गये और हर राजनैतिक दल की औकात सामने आ गयी।कल हुयी मतगणना के बाद दूध का दूध और पानी का पानी हो गया है। जिन नगर निकायों के अध्यक्ष चुनाव हार गये हैं उन्हें बुखार आ गया है जो उनकी जगह चुने गये हैं उनके मुरझाए चेहरों पर रौनक लौट आयी है।इस चुनाव में भी हमेशा की तरह चुनाव जीतने के सारे हथकंडे अपनाये गये और चुनाव फतह करने के लिये साम दाभ दंड भेद सब कुछ अपनाया गया। चुनाव के दौरान मतदाताओं को खुश करने के लिये हाथ पैर ही नही पकड़कर जातीय व साम्प्रदायिक उन्माद ही नही पैदा किया गया बल्कि शराब मुर्गा व नकदी तक का वितरण किया गया। चुनाव परिणाम आते ही नगर निकायों से जुड़े अधिकारी पुराने चेयरमैन से मुंह मोड़कर नवनिर्वाचित के आगे पीछे सलाम मारने में जुट गये हैं।यह पहला चुनाव है जिसमें चुनाव लड़ने का अंदाज ही बदल गया है और सभी मुख्य दलों ने अपने सिंबल पर प्रत्याशी मैदान में उतारे गये थे। इतना ही नहीं भाजपा ने अगर चुनाव प्रचार में अपने स्टार प्रचारकों को हैलीकॉप्टर के साथ मैदान में उतार दिया तो विपक्षी दलों के शीर्ष नेताओं ने अपनी सारी ताकत झोंक दी थी।सभी जानते हैं कि नगर निगमों के चुनावों में हमेशा भाजपा आगे रहती रही है और इस चुनाव में भी उसका पलड़ा भारी है।नगर निकायों के चुनाव परिणाम सामने आने के बाद लगता है कि भाजपा अभी भी अपने पुराने अंदाज में जिंदा है और योगीजी की पकड़ मतदाताओं पर अब भी बरकरार है।इस चुनाव परिणाम से यह भी साफ हो गया है कि भाजपा को करारा जवाब देने के लिए सपा बसपा व कांग्रेस मरी नही बल्कि अंदर ही अंदर फलफूल कर मोटी हो रही है।नगर निगमों में विपक्ष का सूपड़ा साफ हो गया है किन्तु नगरपालिकाओं व नगर पंचायतों में विपक्ष ने अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज कराई है।नगर निकायों के चुनाव आम चुनावों से भिन्न होते हैं क्योंकि इससे जुड़े मतदाता शहरी या नगरीय क्षेत्र मतदाता ग्रामीण मतदाताओं की अपेक्षा अधिक जागरूक होते हैं।नगर निकायों के चुनाव परिणाम से भावी लोकसभा या विधानसभा के चुनावों की तस्वीर देखना उचित नहीं होगा। इस बार नगर निकायों के चुनाव राजनैतिक नये प्रयोग के लिये सदैव याद किये जायेंगे।यह पहला चुनाव था जो क्षेत्रीय विधायकों सासंदों एवं जिम्मेदार पदाधिकारियों की इज्ज्त दाँव पर लगी थी और वह रातदिन अपने पार्टी के प्रत्याशी को विजयी बनाने के लिए खाक् छानते रहें। जिन नगर निकायों में मुसलमानों की संख्या अधिक थी उनमें सपा बसपा और कांग्रेस को सेंध मारने का मौका मिल गया है।पहली बार नगर निकायों के चुनाव के बहाने आम आदमी पार्टी ने प्रदेश की राजनीति में दस्तक दे दी है और उसका भी एक प्रत्याशी चुनाव जीता है।आम आदमी पार्टी उत्तर प्रदेश में पदार्पण राजनैतिक दलों की नींद हराम करने जैसा है। इस बार राजनैतिक दलों ने भले ही अपने प्रत्याशी उतारकर चुनाव लड़ा हो किन्तु प्रत्याशी के व्यवहार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।अगर ऐसा नहीं होता तो राजनैतिक दलों के सामने निर्दलीय प्रत्याशियों को विजय नहीं मिलती। मतदाताओं के एक बड़े वर्ग ने भाजपा में विश्वास व्यक्त करके योगीजी की पीठ थपथपा देकर उनका हौसला अफजाई कर दिया है।मतदाताओं ने यह भी संदेश दे दिया है कि विपक्ष पूरी तरह मरा नहीं है बल्कि वह अभी जीवित है जो स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरुरी होता है।समाजवादी चिंतक एवं नेता डाक्टर राममनोहर लोहिया कहते थे कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सत्ता का बदलाव तवे की रोटी की तरह करना जरुरी होताँ है।जिस तरह से रोटी तवे पर न उलटने पलटने से वह जलकर खाने योग्य नहीं रह जाती है उसी तरह सत्ता में बदलाव न होने से शासक दल निरकुंश होकर जनविरोधी हो जाता है।आजकल राजनैतिक दल बदलाव नहीं बल्कि स्थायित्व कायम करने की कामना करते हैं और उसके लिए सामदाम दंड भेद सारे हथकंडे अख्तियार करते हैं। नगर निकायों के चुनाव परिणाम सत्ता व विपक्ष दोनों को खबरदार करने वाले लगते हैं।जो इस चुनावी महासमर में सफल हुये हैं उन्हें हम अपनी व अपने पाठकों की तरफ से बधाई शुभकामनाएं देते हैं और बिना भेदभाव नगर विकास की अपेक्षा करते हैं।इस समय नगर विकास की दौर में नर्क बनते जा रहे हैं और सीवर नाली नाले बरसात में फेल होकर जीना नर्क कर रहें हैं।नगरों में रहने वाला गरीब तबका और नयी आवासीय कालोनियों का विकास जरूरी हो गया है।
भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी
रामसनेहीघाट, बाराबंकी यूपी