नकल करनी है नायक की करो खलनायक की नही-साध्वी ऋचा मिश्रा
[साध्वी ऋचा मिश्रा]
[की कथा का तीसरा दिन]
[राजा परीक्षित की कथा]
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और जब सती अनुसुइया के तप त्रिदेव बन गए शिशु।
मवई क्षेत्र के बीएससीडी इंटर कालेज में ब्लॉक प्रमुख राजीव तिवारी द्वारा आयोजित किया गया श्रीमद्भागवत ज्ञान गंगा का तीसरा दिन।
कथा के तृतीय दिवस में काशी की प्रख्यात कथा व्यास द्वारा साध्वी ऋचा मिश्रा ने लोगों को बताया अनुसुइया महाराज ध्रुव जड़ भरत राजा बेन की कथा सुनाई।
मवई(फैज़ाबाद)-:
===========नकल करनी है तो किसी नायक का करो खलनायक का नही।क्योंकि नायक की नकल कर आप महानायक भी बन सकते है।ये विचार पूरे मुरली स्थित बाबा शिव चरन दास इंटर कालेज के विशाल प्रांगण में प्रारंभ श्रीमद्भागवत कथा के तृतीय दिवस काशी की सुविख्यात मानस प्रवक्ता कथा व्यास साध्वी ऋचा मिश्रा ने ब्यक्त किया।इन्होंने कथा के तीसरे दिन महाराज ध्रुव सती अनुसुइया जड़भरत राजा बेन की कथा सुनाई।इन्होंने कहा कि अत्रि ऋषि की पत्नी और सती अनुसूया की कथा से अधिकांश धर्मालु परिचित हैं।उनकी पति भक्ति की लोक प्रचलित और पौराणिक कथा है।जिसमें त्रिदेव ने उनकी परीक्षा लेने की सोची और बन गए नन्हे शिशु।
कथा व्यास ने सुश्री मिश्रा ने अनुसुइया की कथा विस्तार पूर्वक कथा बताते हुए कहती है कि एक बार नारदजी विचरण कर रहे थे तभी तीनों देवियां मां लक्ष्मी,मां सरस्वती और मां पार्वती को परस्पर विमर्श करते देखा।तीनों देवियां अपने सतीत्व और पवित्रता की चर्चा कर रही थी।नारद जी उनके पास पहुंचे और उन्हें अत्रि महामुनि की पत्नी अनुसूया के असाधारण पातिव्रत्य के बारे में बताया।नारद जी बोले उनके समान पवित्र और पतिव्रता तीनों लोकों में नहीं है।तीनों देवियों को मन में अनुसूया के प्रति ईर्ष्या होने लगी।तीनों देवियों ने सती अनसूया के पातिव्रत्य को खंडित के लिए अपने पतियों को कहा तीनों ने उन्हें बहुत समझाया पर पर वे राजी नहीं हुई।इस विशेष आग्रह पर ब्रह्मा,विष्णु और महेश ने सती अनसूया के सतित्व और ब्रह्मशक्ति परखने की सोची।
जब अत्रि ऋषि आश्रम से कहीं बाहर गए थे तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ने यतियों का भेष धारण किया और अत्रि ऋषि के आश्रम में पहुंचे तथा भिक्षा मांगने लगे।अतिथि-सत्कार की परंपरा के चलते सती अनुसूया ने त्रिमूर्तियों का उचित रूप से स्वागत कर उन्हें खाने के लिए निमंत्रित किया।लेकिन महात्माओं के भेष में त्रिमूर्तियों ने एक स्वर में कहा हे साध्वी हमारा एक नियम है कि जब तुम निर्वस्त्र होकर भोजन परोसोगी तभी हम भोजन करेंगे।अनसूया असमंजस में पड़ गई कि इससे तो उनके पातिव्रत्य के खंडित होने का संकट है।उन्होंने मन ही मन ऋषि अत्रि का स्मरण किया।दिव्य शक्ति से उन्होंने जाना कि यह तो त्रिदेव ब्रह्मा,विष्णु और महेश हैं।मुस्कुराते हुए माता अनुसूया बोली ‘जैसी आपकी इच्छा’…. तीनों यतियों पर जल छिड़ककर उन्हें तीन प्यारे शिशुओं के रूप में बदल दिया।सुंदर शिशु देख कर माता अनुसूया के हृदय में मातृत्व भाव उमड़ पड़ा।शिशुओं को स्तनपान कराया,दूध-भात खिलाया गोद में सुलाया। तीनों गहरी नींद में सो गए।अनसूया माता ने तीनों को झूले में सुलाकर कहा- ‘तीनों लोकों पर शासन करने वाले त्रिमूर्ति मेरे शिशु बन गए।मेरे भाग्य को क्या कहा जाए।फिर वह मधुर कंठ से लोरी गाने लगी।उसी समय कहीं से एक सफेद बैल आश्रम में पहुंचा।एक विशाल गरुड़ पंख फड़फड़ाते हुए आश्रम पर उड़ने लगा और एक राजहंस कमल को चोंच में लिए हुए आया और आकर द्वार पर उतर गया।
यह नजारा देखकर नारद,लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती आ पहुंचे।नारद ने विनयपूर्वक अनसूया से कहा, ‘माते,अपने पतियों से संबंधित प्राणियों को आपके द्वार पर देखकर यह तीनों देवियां यहां पर आ गई हैं।यह अपने पतियों को ढूंढ रही थी।इनके पतियों को कृपया इन्हें सौंप दीजिए।अनसूया ने तीनों देवियों को प्रणाम करके कहा, ‘माताओं, झूलों में सोने वाले शिशु अगर आपके पति हैं तो इन्हें आप ले जा सकती हैं।’लेकिन जब तीनों देवियों ने तीनों शिशुओं को देखा तो एक समान लगने वाले तीनों शिशु गहरी निद्रा में सो रहे थे।इस पर लक्ष्मी,सरस्वती और पार्वती भ्रमित होने लगीं।नारद ने उनकी स्थिति जानकर उनसे पूछा- ‘आप क्या अपने पति को पहचान नहीं सकतीं? जल्दी से अपने-अपने पति को गोद में उठा लीजिए।’देवियों ने जल्दी में एक-एक शिशु को उठा लिया।वे शिशु एक साथ त्रिमूर्तियों के रूप में खड़े हो गए।तब उन्हें मालूम हुआ कि सरस्वती ने शिवजी को,लक्ष्मी ने ब्रह्मा को और पार्वती ने विष्णु को उठा लिया है।तीनों देवियां शर्मिंदा होकर दूर जा खड़ी हो गईं।तीनों देवियों ने माता अनुसूया से क्षमा याचना की और यह सच भी बताया कि उन्होंने ही परीक्षा लेने के लिए अपने पतियों को बाध्य किया था। फिर प्रार्थना की कि उनके पति को पुन: अपने स्वरूप में ले आए।माता अनसूया ने त्रिदेवों को उनका रूप प्रदान किया। तीनों देव सती अनसूया से प्रसन्न हो बोले, देवी ! वरदान मांगो।त्रिदेव की बात सुन अनसूया बोलीः- “प्रभु !आप तीनों मेरी कोख से जन्म लें ये वरदान चाहिए अन्यथा नहीं।तभी से वह मां सती अनुसूया के नाम से प्रख्यात हुई तथा कालान्तर में भगवान दतात्रेय रूप में भगवान विष्णु का, चन्द्रमा के रूप में ब्रह्मा का तथा दुर्वासा के रूप में भगवान शिव का जन्म माता अनुसूया के गर्भ से हुआ।मतांतर से ब्रह्मा के अंश से चंद्र, विष्णु के अंश से दत्त तथा शिव के अंश से दुर्वासा का जन्म हुआ।
इस अवसर पर कथा के मुख्य यजमान कार्यक्रम संरक्षक रामनरेश तिवारी आयोजक ब्लॉक प्रमुख मवई राजीव तिवारी भूपेंद्र सिंह यादव सरयू प्रसाद तिवारी धर्मेंद्र सिंह मिंटू नान्ह काका हनुमानदत्त पाठक पत्रकार जितेंद्र यादव तेजबहादुर सिंह बृजेश मिश्र रमापति गुप्ता दिलीप सोनी डा0शिवकुमार सोनी मोदी विचार मंच के जिलाध्यक्ष आकाश मणि त्रिपाठी अमरनाथ गुप्ता कैलाश नाथ गुप्ता श्याम जी गुप्ता विजय मिश्र जितेंद्र शुक्ल दीपक शुक्ला दिवाकर शुक्ला देवेन्द्र शुक्ल शिवकुमार त्रिपाठी डा0 अरुण कुमार अवस्थी अनूप मिश्र “गुरुजी” अर्पित मिश्र सुरेश चंद्र मिश्र आशीष शर्मा सुनील यादव राम आसरे रवीन्द्र मौर्या विपुल शुक्ला नवदीप तिवारी अनुपम तिवारी राजन मिश्र रमेश मिश्र आदि लोगों ने श्रीमदभागवत कथा सुधा सरिता कथा का रसपान किया।