‘चाचा’ और ‘भैया’ किसकी डुबोयेंगे ‘नैया’!
जितेन्द्र तिवारी
चौपाल ! उत्तर प्रदेश की राजनीति में इस समय चाचा और भैया नए राजनीतिक समीकरण की जुगत में लगे है। भतीजे से विभक्त हुए चाचा जहां यूपी की सियासत में नया रंग घोल रहे है वही हमेशा से समाजवादी की छाया बने रहे भैया सूबे की सियासत में नया तड़का लगाने को बेकरार है। तो क्या ये माना जाय की सूबे की राजनीति में फिर से कोई भूचाल आने वाला है? क्योंकि चाचा और भैया बीते कुछ दिनों से यूपी की सियासत के लिए जो भ्रूण तैयार करने में जुटे है वही नवजात आने वाले दिनों में सूबे की राजीनीति का नवीन परिवेश गढ़ सकता है! तो प्रदेश की सियासत मौजूदा दौर चाचा और भैया की राजनीतिक उथलपुथल से गरम है। जहां समाजवादी की साइकिल से उतर समाजवादी सेकुलर मोर्चा पर सवार चाचा शिवपाल इसवक्त प्रदेश की राजनीतिक गलियों की धूल फांक नए विकल्प की तलाश में अपने मोर्चे को सशक्त बनाने के लिए दिन रात एक किए है तो वही सियासी गलियों में राजा भैया की भी नई राजनैतिक झुंड के साथ सियासी रण में कूदने की सुगबुगाहट तेज हो चली है! चाचा शिवपाल जिस तरह अपने कुनबे को बढ़ाने में लगे उससे साफ-साफ नजर आता है उनके निशाने पर सीधा समाजवादी पार्टी का कोर वोटर ही है।यादव-मुस्लिम और बैकवर्ड क्लास के वोटर अभी तक समाजवादी पार्टी के कोर वोटर माने जाते रहे है जो शिवपाल के विभक्त होने पर बंटते नजर आएंगे। यानी सियासी गणित में चाचा सीधे भतीजे को नुकशान पहुंचाने वाले है जिस पर भाजपा की नजर है। माना जा रहा है कि इसी नफा-नुकशान को आंकते हुए भाजपा ने चाचा शिवपाल पर दरियादिली दिखाई है और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का बंग्ला शिवपाल के नाम आवंटित कर दिया है। वहीं दूसरी ओर अभी तक राजा भैया निर्दलीय उम्मीदवार के तौर कुण्डा से एक छत्र राज करते चले आ रहे है लेकिन अब सियासी गलियारों में सुगबुगाहट तेज है कि रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया शीघ्र ही एक नई राजनैतिक पार्टी को अमलीजामा पहनाने जा रहे है जो प्रदेश के राजनैतिक समीकरण में नया फार्मूला बना सकता है। माना जाता है कि मुलायम के बेहद करीबी माने जाने वाले निर्दलीय विधायक राजा भैया हाल ही में हुए राज्यसभा चुनाव फिर उपचुनाव में सपा -बसपा के बनते नए समीकरण से नाराज समाजवादी पार्टी से दूरिया बना रहे है। वैसे तो राजा भैया पर किसी पार्टी का जोर दबाव उनके सियासी नफा-नुकशान में कोई मायने नही रखता लेकिन कहीं न कहीं सपा के साथ उनका आंतरिक लगाव जगजाहिर था। जिसका फायदा चुनाव के वक्त सपा को जरूर मिलता था।चर्चा है कि नई पार्टी बनाने को लेकर राजा भैया चुनाव आयोग भी पहुँच गए है।अगर राजनैतिक पंडितो की माने तो उनके अलग दल के चयन से नुकशान सीधे तौर पर समाजवादी पार्टी के साथ – साथ भाजपा का भी होगा। यदि राजा भैया अपनी अलग पार्टी बनाएंगे तो बीजेपी का कोर वोटर माना जाने वाला सवर्ण वोटर उनको विकल्प के तौर पर अपना सकता है। क्योकि माना जा रहा है कि मौजूदा वक्त में एससीएसटी एक्ट को लेकर सवर्ण वोटर में बीजेपी के प्रति थोड़ी बहुत जो नराजगी है वो उससे छिटक सकता है जिसका फायदा यूपी में राजा भैया की पार्टी को मिल सकता है। जैसे-जैसे 2019 का महासंग्राम नजदीक आएगा भाजपा राजा भैया पर भी मेहरबान नजर आ सकती है और भैया पर भी डोरे डाल सकती है हो सकता है ऐसा आने वाले दिनों में देखनो को मिले। तो चाचा और भैया की नई सवारी आने वाले दिनों किसकी नैया डुबोयेगी ये आने वाले 2019 के चुनावी रण में दिखाई देगा। तो इंतजार कीजिये 2019 के महासंग्राम का जिसमे इनकी सियासी ताकत से कौन चित्त होगा और किसके लिए ये बनेंगे संजीवनी!