अमौनी के मौनी ने पूरब से पश्चिम कर दी थी गोमती नदी की धारा,आज आयोजित मेले पर विशेष।

मवई का सुप्रसिद्ध अमौनी मेला आज,लाखों की संख्या में जुटेगी मेलार्थियों की भीड़।
प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाला अमौनी के मेले में पांच जनपदों से आते है मेलार्थी।
सुरक्षा के मद्देनजर पांच थानों की फोर्स के साथ डेढ़ सेक्सन पीएसी होगी तैनात।
राकेश यादव/जितेंद्र यादव
रूदौली (फैज़ाबाद) ! नौ नवमी एक अमौनी” इसी कहावत व बाबा संतोष भारती के जयकारे के बीच आदि गंगा के तट पर स्थिति अमौनी मठ पर कार्तिक पूर्णिमा का स्नान शुक्रवार की भोर चार बजे से शुरू हो जाएगा।मान्यता है कि यहां इस दिन एक बार स्नान करना नौ नवमी स्नान के बराबर फल मिलता है।दो ह्रदय के मिलन का वह मेला जहां पर नदिया भी अपने आप को एक दूसरे से मिलने से नही रोक पाई।ऐसे संगम तट पर भला कौन नही जाना चाहेगा।जी हां हम बात कर रहे है मवई ब्लाक के अमौनी गांव में प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को लगने वाले विशाल मेले की ।जहाँ मठ के समीप ही बह रही आदि गंगा की अविरल व कल्याणी नदी की निर्मल धारा का मिलन हुआ है।ऐसी मान्यता है कि लगभग 450 वर्ष पूर्व पूरब की ओर बह रही नदी की धारा को तत्कालीन मन्दिर के महंत सन्तोष भारती ने बदल दी और पूरब के बजाय पश्चिम दिशा की ओर बहने लगी । मन्दिर के महंत सत्य भारती जी बताते है कि उस समय महंत सन्तोष भारती अमौनी के करीब गोमती नदी के किनारे बसे गांव संगा गढ़ गांव में रहते थे ।जब उनकी आयु अधिक हो गई तो नदी को पार करने में दिक्कत महसूस करने लगे तो उन्होंने नदी की धारा ही बदल दी और पूरब दिशा को बहने वाली नदी पश्चिम दिशा में बहने लगी ।अमौनी मठ पर ही सन्तोष भारती की समाधि है ।मठ पर भगवान शंकर की मूर्ति स्थापित है जहां श्रद्धालु प्रत्येक दिन सैकड़ो की संख्या में पहुँच कर फेरी लगाते है और मन्नते मांगते है ।प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर विशाल मेला लगता है जहां जनपद ही नही बाराबंकी ,अमेठी ,रायबरेली ,सुल्तानपुर ,आदि जिलों के हजारों संख्या में श्रद्धालु आते है।मन्दिर के महंत सत्य भारती बताते है कि यहां मन्नते मागने वाले श्रद्धालुओं की इच्छा बाबा जरूर पूरी करते है।
सैकड़ो सगाई के रस्मो की गवाह भी बनता है मेला
अमौनी में कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाले मेले का महत्व यूं ही नहीं है। यहां लगने वाला मेला प्रत्येक साल सैकड़ों जोड़ों के परिणय सूत्र मे बंधने का गवाह भी बनता है। वर व वधू देखाई की अनौपचारिक रस्म पहली बार यहीं पूरी होती है। इसके बाद शादियां तय होती है। यहां के मेले में इलाके के ही नहीं बल्कि आसपास जिलों के श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। हर घर में मेहमानों का डेरा होता है। तपोस्थली अमौनी में ही कल्याणी व गोमती का मिलन हुआ है। इसलिए यहां पर सगाई की रस्म को वरीयता दी जाती है। मान्यता हैं कि यहां पर सगाई करने से दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है।
सुरक्षा के व्यापक इंतजाम
अमौनी स्थित सन्तोष भारती के समाधि स्थल पर लगने वाले मेले में प्रशासन ने सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए है ।मवई थानाध्यक्ष रिकेश सिंह ने बताया कि मेले में रूदौली ,मवई ,पटरंगा ,खंडासा ,कुमारगंज ,इनायतनगर थानों की पुलिस के अलावा डेढ़ सेक्सन पीएसी तैनात किए जाएंगे जो आरजकतत्वो पर नजर के साथ साथ मेला सकुशल सपन्न कराएंगे।
अंग्रेजो की पुस्तकों में भी है मेले का जिक्र
मवई के अमौनी मेले का जिक्र अंग्रेजो की पुस्तकों में भी मिलता है।यूपी0 उर्दू काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा प्रकाशित मुशीरुलहसन द्वारा लिखित कालोनियन अवध के कस्बात नामक पुस्तक के पेज न0 सात पर अमौनी मेले का जिक्र है।इसमें लिखा है कि जिला सांख्यकी आंकड़ा 1895 में अमौनी मेले में करीब तीन हजार लोग एकत्र होते थे।जो अब लगभग एक लाख को पार कर गई।अमौनी मेले के महत्व को बताते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डा0 अनवर हुसैन कहते है वाकई में अमौनी मेले लोगों के आस्था का केंद्र है।यहां की सुप्रसिद्ध मिठाई गट्टा गैरसमुदाय के लोग विदेशों तक पहुंचाते है।इन्होंने बताया कि मरूदल हक ने अंग्रेजो की पुस्तक का उर्दू रूपांतरण किया है।जिसमें इस मेले का जिक्र मिलता है।
