राम के नाम पर शहादत और परिवार का नही लिया कोई हाल,30 अक्टूबर 1990 में शुरू हुई थी अयोध्या चलो आंदोलन की बयार।
आन्दोलन के इसी आंधी में शहीद हुए थे शुजागंज के रामअचल गुप्ता।
सरकार व विहिप द्वारा किये गए वादे भी शहीद रामअचल को कफन मिलने के साथ ही कब्र में हो गए थे दफन।
अतीत के झरोखों से ली गई कुछ तस्बीर
अयोध्या ! दुनिया भर में मंदिर-मस्जिद विवाद को लेकर चर्चा में रहने वाली अयोध्या के नाम पर कई दशकों से राजनीतिक पार्टियां राजनीति की रोटी सेंक रही हैं।किसी ने मंदिर बनाने के नाम पर सत्ता का सुख भोगा तो किसी ने विपक्ष में बैठकर मंदिर-मस्जिद के नाम पर सियासत कर सुर्खियां बटोरी।
मंदिर-मस्जिद के नाम पर बहे खून से अयोध्या का रक्तरंजित इतिहास आज भी अतीत के पन्नों में दर्ज है और इस खून-खराबे में राम के नाम पर न जाने कितने रामभक्तों ने इस आस में अपने प्राणों की बलि दे दी कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण होगा।लेकिन 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचे के ध्वंस के बाद इस मुद्दे पर ऐसी सियासत शुरू हुई कि इस मामले का फैसला कोर्ट के जरिये होना तय हुआ।लेकिन आज से 26 साल पहले राम के नाम पर अपनी प्राणों की आहूति देने वालों के साथ इंसाफ कब होगा।इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
गोलीकांड में गई थी कारसेवक रामअचल गुप्ता की जान।
30 अक्तूबर 1990 को अयोध्या चलो आन्दोलन में धार्मिक नगरी अयोध्या लाखों रामभक्त सुरक्षा घेरा तोड़ते हुए अयोध्या पहुंचे। कर्फ्यू में लाठी गोली का सामना करते तमाम रामभक्त जख्मी हुए और मारे गए।इनमें अयोध्या के रहने वाले वासुदेव गुप्ता,विनोद गुप्ता और राजेन्द्र के अलावा एक नाम रूदौली तहसील के शुजागंज निवासी 26 वर्षीय राम अचल गुप्ता का भी नाम सामिल था।राम अचल गुप्ता की भी मौत वही मौके पर हो गई थी और उनका पार्थिव शरीर तीसरे दिन यहां शुजागंज पहुंचा था।
सरकार विहिप और मंदिर आन्दोलन से जुड़े संगठन के लोगों ने तात्कालिक अहेतुक सहायता देने के बाद इन्हें शहीद का दर्जा दिया।लेकिन उसके बाद परिवार का हालचाल पूंछने वाला कोई नही रहा।राम के नाम पर शहीद हुए रामअचल गुप्त की विधवा पत्नी राजकुमारी बूढ़े सास ससुर के अलावा अपने तीन तीन मासूम बच्चों की परवरिश किस तरह से कर रही थी इसे जानने की कोशिश भी किसी ने नही की।पति की मौत के कुछ ही वर्ष बाद राजकुमारी के सास ससुर भी परलोक सिधार गए।जिसके बाद इस शहीद की पत्नी पूरी तरह से वेसहारा हो गई।लेकिन इसने किसी तरह अपने मासूम बच्चों की शिक्षा दीक्षा दिलवाकर उनकी शादी की।गरीबी की दंश झेलते हुए उन बीते दिनों पर चर्चा करते ही आज भी राजकुमारी के आंखों से आंशू टपकने लगते है।आज भी इनके परिवार की हालत बहुत अच्छी नही है।बड़ी बेटी ममता की शादी के बाद अब राजकुमारी के साथ उनके दोनों बेटे संजय व संदीप का पूरा परिवार है।दोनों बेटों ने मिलकर घर पर ही एक छोटी किराने की दुकान अभी एक वर्ष पूर्व खोली है।इसी दुकान के भरोसे परिवार के सात सदस्यों का जीवन यापन हो रहा।
पूरा नही किया कोई भी वादा
राममंदिर के नाम पर अपने प्राणों को न्योछावर कर देने वाले शहीद रामअचल गुप्त के बेटे सजंय गुप्ता ने बताया कि पिता की मौत के समय वो तीन वर्ष व उनका छोटा भाई संदीप डेढ़ वर्ष का था।लेकिन गांव वालों के मुताविक पिता की मौत के बाद ग्रामीणों ने गांव का नाम रामअचल नगर करने की मांग की थी।कई वर्षों तक गांव वाले लगातार प्रार्थना पत्र दिया।लेकिन राजस्व अभिलेखों में आज तक नही हुआ।बाजार में स्मृति द्वारा बनाने की बात को भी लोग बताते है लेकिन वो भी आज तक नही हुआ।इन्होंने दुःख प्रकट करते हुए कहा कि कुछ बने या बने लेकिन कष्ट तब और हो जाता है कि जब भाजपा व विहिप के नेता लग्जरी गाड़ियों पर सवार होकर मेरे दरवाजे से गुजर जाते है और हम सभी का एक बार भी हालचाल आज तक नही पूंछा।इन्होंने बताया बाजारों में भाजपा व संगठन के लोग बैठकें करते है हम लोग भी वहां जाते है लेकिन कोई पूंछने वाला नहीं रहता।सरकारी योजनाओं में भी हमारे परिवार को कभी कोई तवज्जे नही मिला।राममंदिर निर्माण को लेकर भाजपा व अन्य पार्टियां जिस तरह से वर्षो से राजनीति कर रही।वो सब देखकर भी दुख होता है।
राममंदिर का निर्माण हो जाय तो पति की सहादत भी हो जाय सार्थक-पत्नी।
राममंदिर को लेकर हुए गोलीकांड में शहीद हो चुके रामअचल गुप्त की पत्नी राजकुमारी कहती है कि पति की मौत के बाद विहिप के लोगो ने पैसा दिया था।लेकिन उन पैसो से मेरा पति वापस नहीं आने वाला है।इतना ज़रूर है कि यदि मंदिर बन जाता है तो उन्हें भी तसल्ली हो जाती।इनके पति की भी सहादत सार्थक हो जाती।लेकिन बड़े नेता लोग कुर्सी के लिए राम का सहारा ले रहे हैं,लगता नहीं कि मंदिर बनेगा।लेकिन इसी सरकार से उम्मीद भी है।
अयोध्या चलो अभियान में राम नाम का नारा लेते हुए कारसेवा में शामिल 20 साल के युवक विनोद गुप्ता उन कारसेवको में शामिल था, जो कारसेवा के दौरान पुलिस की गोलियों का शिकार हुए।अयोध्या के तुलसी उद्यान पार्क के सामने कपड़े की दुकान करने वाले विनोद गुप्ता के परिवार के साथ जो कुछ गुजरा वो किसी को भी हिलाकर रख देने वाला है।अपने इकलौते बेटे की मौत से विनोद गुप्ता की मां बीमार हुई। कुछ ही महीनों में वह इस दुनिया को अलविदा कह गयी।वहीं जवान बेटे की मौत का गम और पत्नी से बिछड़ने की पीड़ा ने विनोद के पिता को पागल कर दिया। कुछ ही दिनों में उन्होंने भी दम तोड़ दिया। आज हालत ये है कि अयोध्या में उनकी दुकान बंद हो चुकी है और राम के नाम पर पूरा परिवार खत्म हो चुका है।
गरीबी में जी रहा है कारसेवकों का परिवार।
आंदोलन में मारे गए राजेन्द्र के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है।विवादित ढांचे के गुम्बद पर झंडा लगाते समय नीचे गिरने से अपनी जान गवाने वाले राजेन्द्र का परिवार बेहद गरीब है और टोकरी बनाकर अपना पेट पालता है। घर में सबसे बड़े भाई राजेन्द्र की मौत के सदमे से अभी भी परिवार उबर नहीं पाया है।ऐसा ही कुछ हाल मंदिर आन्दोलन में अपनी जान गंवाने वाले वासुदेव गुप्ता का है। 2 बेटियों और एक बेटे और पत्नी का भरा पूरा परिवार छोड़कर जाने वाले वासुदेव गुप्ता की मौत के बाद उनका परिवार बिखर गया। पति की मौत के गम मे कुछ साल बाद पत्नी की मौत हुई। इसके बाद बेटे संदीप गुप्ता ने अपने कंधों पर परिवार का बोझ उठाया आर्थिक तंगी के चलते बेटियों की शादी नहीं हो पायी है। पिता की मौत के बाद मदद के नाम पर विहिप ने कुछ रुपए दिए थे, लेकिन शायद इस परिवार के जरुरतों के हिसाब से ऊंट के मुंह में जीरा भी साबित नहीं हो पाए और आज वासुदेव गुप्ता के परिवार के बचे तीन सदस्य कपड़े की दुकान चलाकर अपनी जिंदगी किसी तरह काट रहे है।तीन बेटियों और दो बेटो सहित पति पत्नी मिलकर रमेश पांडे के 7 लोगों के भरे परिवार की खुशियों को उस ग्रहण लग गया। जब 2 नवंबर 1990 को मंदिर आन्दोलन में रमेश पांडे गोलियों का शिकार हो गए। इस दुनिया से चले गए। अयोध्यावासी होने के नाते राम के नाम पर अपने प्राण देने वाले रमेश पांडे की पत्नी गायत्री पांडे रुंधे गले से कहती है कि यदि पता होगा कि आगे चलकर मंदिर के नाम पर सिर्फ राजनीति होती तो मैं उनको 2 नवंबर को जाने नहीं देती, लेकिन वो तो चले गए, लेकिन उनका सपना आज भी आंखों को नम कर देता है।इतने बड़े परिवार की जिम्मेदारी उठाते हुए किसी तरह अपने बेटे-बेटियों को पढ़ा लिखाकर गायत्री पांडे ने उनका विवाह तो कर दिया, लेकिन मंदिर मुद्दे को लेकर हो रही राजनीतियों से बेहद आहत हैं और कहती है कि उन्हें किसी की मदद नहीं चाहिए। बस उनके पति की कुर्बानी बेकार न जाए और मंदिर के नाम पर राजनीति बंद हो। वही कलकत्ता के रहने वाले शरद कोठारी और राम कुमार कोठारी भी इसी आन्दोलन में पुलिसकर्मियों की गोलियों का शिकार हुए थे। एक समृद्ध परिवार से ताल्लुक रखने वाले कोठारी बंधू का परिवार किसी अभाव से ग्रसित तो नहीं है, पर परिवार के दो जवान बेटों के जाने का गम आज भी उनके परिवार को है। कोठारी बंधू की बहन पूर्णिमा कोठारी की माने तो उनके भाइयों ने मंदिर के नाम पर अपनी जान दे दी, लेकिन उनकी शहादत सही माने में रंग नहीं ला सकी। उन्हें उस दिन का इंतज़ार रहेगा जब उनके मृतक भाइयो का सपना पूरा होगा।
कारसेवको की शहादत का मूल्य चुकाना असंभव-विहीप
अयोध्या में मंदिर आन्दोलन में मारे गए कारसेवकों के परिजनों की स्थिति पर सवाल करने पर विहिप के लोगों का कहना है कि उनके बलिदान की कीमत नहीं चुकाई जा सकती। फिर भी विहिप ने उन सभी परिवारों को आर्थिक मदद दी है,जो कारसेवा में मारे गए हैं। साथ ही उनके बच्चों के विवाह और अन्य आयोजनों में भी विहिप उनके साथ रहा है।उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाने दिया जाएगा और बहुत जल्द अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण होगा।