देश की एकता और अखण्डता के लिये पूरे जीवन समर्पित रहूंगी: पंखुरी पाठक
समाजवादी पार्टी की मीडिया पैनेलिस्ट की लिस्ट में नाम गायब होने के बाद प्रवक्ता पंखुड़ी पाठक ने समाजवादी पार्टी छोड़ दी थी हालांकि, पार्टी छोड़ने के पीछे की वजह उन्होंने जो बताई है वह गंभीर है. उनका कहना था कि पार्टी समजवादी सिद्धांतों से भटक गई है. उन्होंने अपने ट्विटर पर लिखते हुए कहा था कि अब वहां रहने से दम घुटता है.
समाजवादी पार्टी छोड़ने के बाद उन्होंने लिखा था कि “‘कभी जाति और कभी धर्म तो कभी लिंग को लेकर जिस तरह की अभद्र टिप्पणियां की जाती है, पर पार्टी नेतृत्व सबकुछ जानकर भी शांत रहता है. यह दिखता है कि नेतृत्व ने भी इस स्तर की राजनीति को स्वीकार कर लिया है. ऐसे माहौल में अपने स्वाभिमान के समझौता करके पार्टी में बने रहना मुमकिन नहीं रह गया था.”
आज उन्होंने देश और समाज के हालात पर भावुक हो अपने फेसबुक पोस्ट पर लिखा
#मन_की_बात
परीक्षा छूटते वक़्त रास्ता रोक कर नमाज़ पढ़ने का विरोध किया तो ‘संघ का एजेंट’ बता दिया गया।
कावड़ियों की गुंडागर्दी का विरोध किया तो ‘हिन्दू-विरोधी’
बता दिया गया।
सपा से अलग हुई तो भाजपा में शामिल होने की अफवाह फैला दी।
काश ये सब इतना सरल होता!
काश किसी को समझना इतना आसान होता!
मेरे नानाजी वामपन्थी विचारधारा में विश्वास रखते थे व मेरे पिताजी का परिवार कांग्रेसी है।
घर में निराला को भी पढ़ा जाता था, दिनकर को भी, अटल जी को भी और ग़ालिब और फैज़ को भी।
जगजीत सिंह, पंकज उदास को भी सुना है और ग़ुलाम अली और मुन्नी बेगम को भी।
राजस्थान के टोंक में अपने बचपन में मेरी माँ और मौसियों ने अपने कई ‘मुसलमान’ भाईयों को राखी बाँधी है और सांप्रदायिक तनाव के समय ‘पांडे जी’ के परिवार की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उनके ‘मुसलमान’ पड़ोसी लिया करते थे।
84 के दंगों में जल रही दिल्ली में दादाजी ने अपने बेटों के साथ पड़ोस के सिख परिवारों की रक्षा करने का बेड़ा उठाया।
मेडिकल कॉलेज में पढ़ रहे मेरे पिताजी ने अस्पताल में ओवर टाईम किया।
बचपन में अपनी मम्मी की ईसाई नर्सों के साथ कई क्रिसमस चर्च में मनाए हैं।
अवध जाती हूँ तो हनुमानगढ़ी भी जाती हूँ और देवा शरीफ भी।
अजमेर जाती हूँ तो ख्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह भी जाती हूँ और पुष्कर में पूजा भी करती हूँ।
बचपन गांधी और नेहरू को पढ़कर निकला।
माँ ने ‘सारे जहाँ से अच्छा’ भी सिखाया, ‘वंदे मातरम्’ भी और ‘लब पे आती है दुआ’ भी।
प्रेम चंद और मंटो दोनों पढे – दोनों ही अंग्रेज़ी में।
‘ब्राह्मण’ होने का एक ही अर्थ मालूम था – सदा ज्ञान की प्राप्ति का प्रयत्न करना।
कॉलेज जाने तक जाति व्यवस्था की भनक नहीं पड़ी।
सगे जैसे दो भाई हैं – एक मुसलमान है एक सिख है।
धर्मनिरपेक्षता परवरिश में भी है और खून में भी।
इसे चाह कर भी अपने से अलग नहीं कर सकती – मुझे भारतीय होने का यही तरीका आता है।
बस ‘राजनैतिक धर्मनिरपेक्षता’ में फेल हो जाती हूँ, क्या करूँ, ग़लत को ग़लत बोलने की बुरी आदत है।
सच तो ये है कि लोग क्या बोलते हैं और सोचते हैं उससे मुझे बहुत फर्क नहीं पड़ता, मैं अपने सिद्धांतों से जुड़ी हुई हूँ, कोई पद कोई दल इन्हें नहीं बदल सकता।
लेकिन जहाँ देश की एकता और अखंडता की बात है, उसके लिए पूरे जीवन भर समर्पित रहूँगी।
और हाँ, देश में अगर भाईचारे और अमन बनाए रखने के लिए कुर्बानी देने का मौका आए तो बिना पूछे सबसे पहले नाम लिख लेना।
बाकी सबको अपनी अपनी सोच मुबारक।
जय हिंद।
जाने कौन है पंखुरी पाठक
पंखुड़ी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से लॉ की डिग्री ली है. वर्ष 2010 में हंसराज कॉलेज में ज्वाइंट सेक्रेट्री का चुनाव जीता था. दिल्ली के छात्रसंघ चुनाव में पंखुड़ी ने समाजवादी पार्टी को मजबूत किया था. वर्ष 2013 में उन्हें लोहिया वाहिनी का राष्ट्रीय सचिव बनाया गया. सोशल मीडिया पर उनके हजारों फॉलोअर हैं. केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह और अलका लांबा, वरिष्ठ पत्रकार सुमित अवस्थी जैसे लोग उन्हें ट्विटर पर फॉलो करते हैं.