अशोक गहलोत: जादूगर पिता के बेटे की मुख्यमंत्री बनने की कहानी
रिपॉर्ट: अरविंद उपाधयाय लखनऊ
राजनीति के पैंतरों में माहिर अशोक गहलोत जादूगरी से अपना लगाव बयां कर चुके हैं। कई मंचों से उन्होंने बताया है कि अगर वह राजनीति में नहीं होते तो जादूगर ही रहते। लेकिन, सियासी तौर पर उनका मैजिक खूब चला है। इसी का नतीजा है कि वह आज कांग्रेस के मजबूत स्तंभों में से एक हैं।
अशोक गहलोत पेशे से जादूगर थे। उनके पिता भी जादूगरी के व्यावसाय से घर-परिवार चलाते थे। लेकिन, उन्होंने अपना असली जादू राजनीति में दिखाया और राजस्थान का सियासी नजरिया ही बदल डाला। उस दौर में जब राजस्थान की राजनीति में जाट और ब्राह्मण नेताओं का बोलबाला था, तब माली परिवार से आने वाले गहलोत 1998 में पहली बार मुख्यमंत्री बने। उस दौरान कांग्रेस ने 8 साल से सत्ता में काबिज बीजेपी को धूल चटाई थी। उस दौरान बीजेपी के सीएम कद्दावर नेता भैरो सिंह शेखावत थे। मगर शेखावत के तिलिस्म को उन्होंने पांच साल की कोशिश में छू-मंतर कर दिया।
राजनीति के पैंतरों में माहिर अशोक गहलोत जादूगरी से अपना लगाव बयां कर चुके हैं। कई मंचों से उन्होंने बताया है कि अगर वह राजनीति में नहीं होते तो जादूगर ही रहते। लेकिन, सियासी तौर पर उनका मैजिक खूब चला है। इसी का नतीजा है कि वह आज कांग्रेस के मजबूत स्तंभों में से एक हैं। राजस्थान की राजनीति के साथ-साथ केंद्रीय नेतृत्व में भी उनका काफी दखल है।
कौन हैं गहलोत?
वह कोई प्रखर वक्ता नहीं हैं. न उनकी भाषा में कोई अलंकार होता है लेकिन जब वह बोलते हैं, शब्द निशाने पर पहुंचते हैं.
राजस्थान की सियासत के एक मज़बूत किरदार अशोक गहलोत ने जब कुछ माह पहले उदयपुर में कहा, ‘ख़ल्क [जनता] की आवाज़ ही ख़ुदा की आवाज़ होती है.’ राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई.
गहलोत ने ये तब कहा जब राज्य में उनके प्रतिस्पर्धी और विरोधी उन्हें मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर करने का प्रयास कर रहे थे.
राज्य की राजनीति में गहलोत को उन लोगों में शुमार किया जाता है जो समाज सेवा के ज़रिए राजनीति में दाख़िल हुए और फिर ऊँचाई तक पहुंचे. यह 1971 की बात है जब जोधपुर का एक नौजवान बांग्लादेशी शरणार्थियों के शिविर में काम करते दिखा. पर ये गहलोत के लिए पहला मौक़ा नहीं था कि वह सामजिक कार्यों से जुड़े. इसके पहले गहलोत 1968 से 1972 के बीच गाँधी सेवा प्रतिष्ठान के साथ सेवा ग्राम में काम कर चुके थे.
पिता थे जादूगर
3 मई 1951 में जोधपुर में जन्मे गहलोत के पिता लक्ष्मण सिंह जादूगर थे.
गहलोत ख़ुद भी जादू जानते हैं. हाल में जब उनसे पूछा गया कि क्या वह इस बार भी जादू दिखाएंगे?
गहलोत ने कहा, “जादू तो चलता रहता है, कुछ को दिखता है कुछ को नहीं भी दिखता है.”
जानकार कहते हैं कि सेवा कार्य के भाव ने गहलोत की पहुंच इंदिरा गाँधी तक कराई .जानकारों के मुताबिक़, एक मर्तबा उन्हें जम्मू-कश्मीर के चुनावों में एक क्षेत्र का प्रभारी बनाकर भेजा गया. इसके साथ कुछ धनराशि भी दी गई थी.
चुनाव के बाद गहलोत ने पाई-पाई का हिसाब दिया और बचे हुए पैसे पार्टी में वापस जमा करा दिए. गहलोत ने जीवन का पहला चुनाव जोधपुर विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष का लड़ा.
यह 1973 की बात है. इस चुनाव में गहलोत पराजित हो गए. वो कांग्रेस के नए बने राष्ट्रीय छात्र संगठन से जुड़े थे. उस वक़्त गहलोत अर्थशास्त्र में एम.ए. के विद्यार्थी थे.
उनके सहपाठी राम सिंह आर्य कहते हैं, “इसके बाद सभी विद्यार्थियों ने उन्हें अर्थशास्त्र विभाग में एक इकाई का अध्यक्ष चुन लिया.”