भाषण कभी राशन की जगह नहीं ले सकते:अनिल यादव
अनिल यादव( पूर्व प्रवक्ता सपा ) ने एक प्राइवेट न्यूज़ पोर्टल से बातचीत के दौरान हिन्दीभाषी क्षेत्र में बीजेपी के हार और विपक्ष के जीत का कारण बताते हुए मोदी नेहरू की रणनीतियों पर विशेष उदाहरण दिए.
क्या कुछ कहा अनिल यादव( पूर्व प्रवक्ता सपा )
मोदी और नेहरू
5 राज्यों के चुनाव के नतीजे सबके सामने हैं, जो भाजपा सारे देश को भगवा रंग में रंगना चाहती थी उसे अपने ही पास से उत्तर भारत का हिंदी भाषी हिस्सा गवाना पड़ गया और इसके साथ ही भगवा करण का सपना भी।
यह हिस्सा 2019 के लिहाज़ से भी महत्वपूर्ण है क्यूंकि राजस्थान छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश से कुल 65 सीट है जिनमें 62 भाजपा के खाते में है, कहीं ना कहीं अब उन 62 को रोक कर रखना बड़ी चुनौती होगी और यही कारण भी है कि इस चुनाव को 2019 का सेमी फाइनल भी कहा जा रहा था।
ख़ैर कारण ढूंढने और गलती सुधारने की कसमकश में बैठकों का दौर शुरू हो गया है चाणक्य कहलाने वाले अमित बाबू लगातार अलग अलग प्रदेश के आला नेताओं से बैठक कर रहे है और इस मामले में संजीदा प्रधानमंत्री जी ने तो बीच चुनाव में बैठक बुलवा ली थी हालांकि उसे आगामी शीत कालीन सत्र से जोड़ कर देखा जा रहा है लेकिन ऐसे गरमा गर्म माहौल में चुनाव की चर्चा ना हुई हो ये कहना भी बेमानी होगा। प्रदेश के धुर्धर नेताओं के बावजूद भी प्रमुख चेहरा मोदी जी का ही रहा जिसे समझते हुए मोदी जी ने कोई कसर प्रचार में नहीं छोड़ी चाहे रैली हो या वादे वह कहीं पीछे नहीं रहे यहां तक कि चुनाव जीतने के लिए उन्होंने दूसरे नेताओं की दादी नानी का भी खूब इस्तेमाल किया। जिस तरह रैली कि भीड़ उनकी लोकप्रियता की गवाही दे रही थी उसी तरह लच्छे दार भाषण में हर दल के नेता को उन्होंने पीछे छोड़ दिया था। अगर आज भी लोक सभा चुनाव के परिपेक्ष में बात करी जाए तो विपक्ष के सामने बड़ा सवाल यही आता है कि मोदी बनाम कौन, इसका मतलब साफ़ है कि उनकी लोकप्रियता बाक़ी से कही अधिक है और इससे भी कहीं अधिक लोकप्रियता इस देश ने आजादी के बाद नेहरू जी के ज़माने में देखी जब विपक्ष का हर नेता इस मामले में तत्कालीन प्रधानमंत्री से कोसो दूर था जिस पर समाजवादी पुरोधा आचार्य नरेंद्र देव ने पंडित नेहरू पर कटाक्ष करते हुए सन 1949 में कहा था कि नेहरू हमेशा अपने समर्थन में आयि भीड़ को देखकर प्रसन्नचित होते है और ऊर्जावान महसूस करते है और यह महसूस करते है की उनकी नीतियों से जनता खुशहाल है लेकिन वह ये भूल जाते है वो भीड़ उनकी व्यतिगत प्रशंसक है जो उन्हें सुनना देखना निश्चित ही पसन्द करती है लेकिन इस बात का यह मतलब कतई नहीं की वह उतने ही ख़ुश उनकी नीतियों से भी हैं।
कहीं ना कहीं ये वही खुश फैमी तो नहीं जिसके शिकार आज के लोक प्रिय नेता नरेंद्र मोदी है क्यूंकि लाखों करोड़ों लोगों का मोदी मोदी करना और फिर चुनाव में हरा देना इस बात की और इशारा करता है कहीं ना कहीं नीतियां वो प्रशंसा आम जन मानस में नहीं पा सकी जो आपने पा रखी है क्यूंकि अंत में भूखे का पेट रोटी ही भर सकती है, भाषण कभी राशन की जगह नहीं ले सकते।
मंथन शुरू हो गया है और निष्कर्ष पर भी पहुंचा जाएगा तो कई कारणों में से एक कारण यह भी हो सकता है।
अनिल यादव, पूर्व प्रवक्ता सपा