Kkc राजरंग 2019:गठबंधन का खेल,छोटा गठबंधन होगा फेल
अब तक बड़े गठबंधन को ही मिली है जीत की मंजिल।
[फाइल फोटो प्रहलाद तिवारी-ब्यूरो रिपोर्ट]
चौपाल ! यूपी,बिहार से लेकर तमिलनाडु और महाराष्ट्र में हाल के गठबंधन बड़ी पार्टियों की अंदरुनी हलचल और अनिश्चितता की ओर इशारा कर रहे हैं. उत्तर भारत में क्षेत्रीय दलों के तैयार हो रहे ताकतवर गठबंधन से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए बीजेपी दक्षिणी राज्य तमिलनाडु और महाराष्ट्र में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन का दायरा मजबूत करने व कांग्रेस के नेतृत्व वाले बिखरे महागठबंधन के अलावा राज्यों की ताकतवर पार्टियों को साथ लाने की मशक्कत में जुट गई है। पार्टियों को पता है कि ज्यादा वोट से बड़ी जीत जरूरी है और बड़ी जीत गठबंधन में शामिल पार्टियों की संख्या पर निर्भर करेगी।आंकड़े बताते हैं कि ज्यादा वोट पाना हमेशा सीट की गारंटी नहीं है और इस वोट परसेंटेज और सीट के समीकरण को गठबंधन की राजनीति किनारे कर देती है।1999 से लेकर 2014 तक के चुनावों में मुख्यतौर पर तीन गठबंधन बने।वही गठबंधन सत्ता तक पहुंचा जिसने सबसे ज्यादा पार्टियों के साथ समझौता किया. 1999 में NDA ने 19 पार्टियों के साथ गठबंधन किया जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए गठबंधन 11 पार्टियों को लेकर चुनाव में उतरी थी. बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए ने सरकार बनाई. उसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के पास 1999 से 7 कम पार्टियां थीं, जबकि यूपीए 20 पार्टियों के गठबंधन के साथ चुनाव मैदान में उतरा. इस बार केंद्र में यूपीए ने सरकार बनाई।2009 में भी यूपीए के पास एनडीए से दो पार्टियां अधिक थीं। ऊपर से मुलायम सिंह और बसपा ने बिना मांगे यूपीए सरकार का समर्थन कर दिया। तीसरा मोर्चा यानी थर्ड फ्रंट 2014 तक आते-आते बिखर गया. 2014 में फिर से एनडीए ने यूपीए के मुकाबले ज्यादा पार्टियों को जोड़ा। 2009 के मुकाबले 8 पार्टियों को गठबंधन में शामिल करते हुए 18 पार्टियों के साथ चुनाव लड़ते हुए 336 सीट जीतकर सरकार बनाई।गठबंधन लोकतंत्र के झुकाव पर कैसे हावी होता है इसका सबसे सीधा उदाहरण देखिए। बिहार में 2014 के चुनाव में जेडीयू 16 फीसदी वोट के साथ लोकसभा की केवल दो सीटें जीत पाई। जबकि रामविलास पासवान की पार्टी महज साढ़े छह फीसदी वोट लेकर 6 सीट जीतने में सफल रही। यह दिखाता है कि चुनाव में पार्टियों की हवा से ज्यादा जीतने लायक गठबंधन होना जरूरी है।
गठबंधन सरकार की सहयोगी छोटी पार्टियां भले ही संसद में ज्यादा संख्या में नहीं पहुंचीं मगर एक तय वोट बैंक का दूसरे क्षेत्र में बड़ी पार्टी को ज्यादा फायदा मिला। 1999 में भारी भरकम जीत के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार 2004 में हार गई। इंडिया शाइनिंग कैंपेन की विफलता के साथ-साथ बड़ी वजह गठबंधन से सात छोटे दलों का निकलना भी था। 1999 की 182 सीटों वाली बीजेपी को 2004 में महज 138 सीट हासिल हुईं। बीजेपी ने 2004 लोकसभा चुनावों में मिले झटके से सीख ली है और 2014 से आगे बढ़कर 2019 में गठबंधन को और विस्तार देने में जुट गई है।
हालांकि यूपी में मायावती की बीएसपी और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के एक साथ आने से यूपी में उसको बड़े झटके के आसार हैं।2004 में सपा और बसपा ने बीजेपी को 80 सीटों में से केवल 10 पर रोक दिया था। बसपा को 2004 में 19 और सपा को 35 सीट मिली थीं। अब जब दोनों ताकतवर दल एक साथ हैं तो ऐसे में बीजेपी के लिए 2004 से भी बड़ी मुश्किल खड़ी होने वाली है।बिहार में लालू यादव और कांग्रेस के महागठबंधन के साथ एनडीए से जुड़े पुराने नेताओं खासकर उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी के आने से भी बीजेपी और नीतीश कुमार के लिए चुनौती बड़ी हो गई। 2004 में आरजेडी के नेतृत्व वाले कांग्रेस और राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने 40 में से 29 सीट जीत ली थीं। बीजेपी और जनता दल यूनाइटेड को केवल 11 सीट मिली थीं। 2019 में हालात बदल चुके हैं। पासवान एनडीए के साथ हैं लेकिन एनडीए के पूर्व सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा और जीतन मांझी यूपीए का हिस्सा बन चुके हैं।बीजेपी इन सीटों पर होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई के लिए दक्षिणी राज्य तमिलनाडु और महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ फिर से गठबंधन का ऐलान किया है। कांग्रेस ने भी शरद पवार को साथ लेकर उतरने का फैसला किया है।2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने पीएमके और एमडीएमके के साथ गठबंधन की वजह से एक सीट पर कामयाबी पाई थी जबकि एआईएडीएमके ने 39 में से 37 सीट जीत ली थीं। अब 2019 में बीजेपी को लगता है कि किसी भी तरह से एआईएडीएमके को इस बार साथ लेना चाहिए। हालांकि एआईएडीएमके 2004 में भी बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा रही है। 2004 के कुल 12 दलों के एनडीए गठबंधन में एआईएडीएमके एकमात्र पार्टी थी जो एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। तमिलनाडु में डीएमके और छोटी पार्टियों के साथ यूपीए गठबंधन में सीटों पर अतिम फैसला हो रहा है। कांग्रेस तमिलनाडु में 9 सीटों पर और डीएमके 25 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। यूपीए पांच सीटें अन्य छोटे दलों को देने पर विचार कर रहा है।महाराष्ट्र में एनडीए के बैनर तले शिवसेना और बीजेपी फिर से साथ आ चुके हैं। बीजेपी 25 और शिवसेना 23 सीटों पर लड़ने जा रही है। इस गठजोड़ के जवाब में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी ने हाथ मिलाया है। 1999 के खराब प्रदर्शन के बाद कांग्रेस और एनसीपी 2004 में भी साथ आए थे। 2004 में दोनों पार्टियों ने महाराष्ट्र की 23 सीटों पर जीत हासिल की थी।2019 का चुनाव क्षेत्रीय पार्टियों के नाम होगा। गठबंधन के नेतृत्व वाली बड़ी पार्टियां इनके भरोसे ही बड़ी जीत हासिल करने की रणनीति बना रही हैं। राजनीतिक रूप से यह माहौल करीब-करीब 2004 जैसा है, जहां 1999 के बाद विपक्ष खासतौर पर यूपीए किसी भी तरह एनडीए को सत्ता से बाहर रखने के लिए आतुर था।
“जयहिंद”