मायावती नहीं लड़ेंगी चुनाव? मैनपुरी में मुलायम सिंह के लिए मांगेंगी वोट !
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की राह रोकने की मुहिम में बसपा प्रमुख मायावती के एक और बड़ा फैसला लेने की खबर है. वह इस बार लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगी. वह महागठबंधन के समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी और लोकदल के उम्मीदवारों के लिए प्रचार करेंगी और वोट मांगेंगी.
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और लोकदल प्रमुख चौधरी अजीत सिंह के साथ वह साझा चुनावी सभाएं भी करेंगी. मायावती ने इस बार अपने कट्टर विरोधी मुलायम सिंह यादव के लिए मैनपुरी में रैली करने का मन बनाया है.
हालांकि कुछ दिन पहले इस बात की चर्चा थी कि मायावती इस बार लोकसभा चुनाव लड़ेंगी. सपा-बसपा गठबंधन बनने के बाद इसकी संभावना ज्यादा प्रबल थी. इस बाबत मायावती के लिए आंबेडकरनगर से लेकर बिजनौर तक के जातीय आंकड़े जुटाये गये थे, मगर जिन दो सीटों से वह चुनाव लड़ती आयीं हैं, उनमें से नगीना सीट से गिरीश चंद्र जाटव व आंबेडकरनगर सीट से पवन पांडेय के इस बार चुनाव लड़ाने की खबर है.
बुलंदशहर लोकसभा सीट से भी उन्होंने उम्मीदवार का नाम तय कर दिया है. मायावती इस बार पूरा ध्यान गठबंधन के तमाम उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने पर केंद्रित करेंगी. उत्तर प्रदेश में करीब 12 साझा रैलियां वह अखिलेश यादव के साथ करेंगी. बताया जा रहा है कि साझा रैलियों का कार्यक्रम मायावती द्वारा तैयार किया गया है.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक उत्तरी प्रदेश में उनकी 39 चुनावी सभाएं होंगी. वह देश के दूसरे हिस्सों में भी कश्मीर से लेकर कर्नाटक धुआंधार प्रचार करेंगी. मायावती अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत नागपुर से करेंगी, जहां बाबा साहेब आंबेडकर ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी. उत्तर प्रदेश में वह सात अप्रैल को देवबंद से चुनाव प्रचार शुरू करेंगी.
गेस्ट हाउस कांड के बाद पहली बार होगी रैली
लखनऊ. उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में भाजपा को रोकने के लिए सपा-बसपा गठबंधन के बीच के बाद अब दोनों दलों के शीर्ष नेताओं के साझा चुनाव प्रचार के फैसले के तहत मायावती सपा संरक्षक मुलायम सिंह लिए प्रचार कर सकती हैं.
लोकसभा चुनाव में सूबे में एसपी, बीएसपी और आरएलडी के महागठबंधन को जीत दिलाने के लिए एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव और मायावती 12 साझा रैलियां करेंगे. इनमें एक रैली मैनपुरी में तय है, जहां से सपा संरक्षक मुलायम सिंह अपनी पार्टी के उम्मीदवार हैं.
अगर ऐसा होता है, तो 1995 के गेस्ट हाउस कांड के बाद दोनों पहली बार किसी चुनावी सभा में एक साथ मंच पर तो होंगे ही, मायावती को उस कांड को भुला कर अपने धुर विरोधी मुलायम सिंह के लिए वोट मांगनी होगी. पार्टी सूत्रों के मुताबिक समाजवादी पार्टी ने महागठबंधन के चुनाव प्रचार का शेड्यूल तैयार किया है.
1995 में हुए गेस्ट हाउस कांड को भूलना होगा मायावती को
1992 में मुलायम सिंह यादव ने जनता दल से अलग हो कर समाजवादी पार्टी बनायी थी. 1993 में उन्होंने भाजपा को रोकने के लिए बसपा से हाथ मिलाया. इसमें उन्हें कामयाबी भी मिली थी और उन्होंने सरकार बनायी.
हालांकि मायावती इस सरकार में शामिल नहीं हुई थीं और जून 1995 में बसपा ने मुलायम सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. तब गठबंधन टूट गया था.
मुलायम सरकार अल्पमत में आ गयी थी. सरकार बचाने के लिए विधायकों के जोड़-तोड़ का सिलसिला शुरू हुआ. बात न बनती देख सपा के विधायक और कार्यकर्ता मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस पहुंचे, जहां पहले तो मायावती के साथ बदसलूकी की गयी और कथित तौर पा उन्हें जान से मारने की कोशिश की थी.
अपर्णा को मुलायम नहीं दिला पाये टिकट, चौथी सूची जारी
सपा ने अपने उम्मीदवारों की चौथी सूची जारी कर दी है. इसमें पांच नाम हैं, मगर मुलायम सिंह यादव की बहू अपर्णा यादव गायब का नाम इसमें नहीं हैं. अपर्णा संभल से चुनाव लड़ना चाहती हैं, लेकिन उन्हें दरकिनार कर इस सीट से शफीकुर रहमान बर्क को टिकट दिया गया है.
जैसी की पहले खबर आयी थी कि अपर्णा को दस सीट से टिकट देने की सिफारिश उनके ससुर मुलायम सिंह यादव ने खुद की थी. मुलायम ने इसे लेकर गुरुवार को ही अखिलेश से बात की थी, पर 24 घंटे के अंदर संभल सीट से दूसरे प्रत्याशी का नाम घोषित कर दिया गया