Kkc न्यूज :बिखरते यदुवंश को भीष्म पितामह की तरह देखते बेबस मुलायम-के.के.द्विवेदी
लोकसभा के युद्ध में चाचा -भतीजा व भाई -भाई बने सियासी दुश्मन!
मुलायम सिंह यादव बने भीष्म पितामह तो लालू को उनके बेटे ही दे रहे हैं कलह का प्रसाद।
कृष्ण कुमार द्विवेदी(राजू भैया)
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लखनऊ ! देश के समाजवादी यदुवंश में कौरव- पांडवों सा महासंग्राम ठना हुआ है !यहां संस्कार एवं वैचारिक सम्मान की परंपरा परे नजर आ रही है ।लोकसभा के महायुद्ध में चाचा भतीजा एवं भाई पर भाई वार पर वार करने में जुटे हुए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव भीष्म पितामह की भूमिका में है? तो वहीं लालू प्रसाद यादव को उनके बेटे हैं भेट में कलह का प्रसाद देने में जुटे हुए हैं?राज सत्ता का मद एवं सत्ता की कुर्सी को पाने का नशा हमेशा ही बहुत खतरनाक रहा है। इसके अनेक उदाहरण देश में सामने आते रहे हैं। जहां सत्ता के लिए परिवार, परिवार ना रहा और खून से जुड़े रिश्ते, रिश्ते ना रह गए। कुछ ऐसी ही बानंगी लोकसभा के चुनाव में इस समय समाजवादी विचारधारा से सने यदुवंशी परिवारों में नजर आ रही है। जी हां हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के प्रभावशाली यदुवंश परिवार पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जी के परिपेक्ष में। यही नहीं बिहार के ताकतवर यादव परिवार पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के घर में भी कलह ने झंडा गाड़ रखा है। उत्तर प्रदेश में नेता मुलायम सिंह यादव का परिवार एक समय परिवारिक एकता का प्रतीक माना जाता रहा है ।लेकिन आज इस परिवार में ऐसी दीवारें खिंच गई हैं जो कहीं ना कहीं श्री यादव को दुखी जरूर करती होंगी! सपा की प्रदेश में सत्ता के रहते एवं उसके जाते जाते मुलायम सिंह यादव के पुत्र पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एवं उनके छोटे भाई शिवपाल यादव के बीच जब कटुता बढ़ी तो उसका हाल ये हुआ कि दोनों ने अलग-अलग रास्ते अख्तियार कर लिए ।यहां मुलायम ने काफी प्रयास किया कि उनका परिवार टूटने से बच जाए लेकिन अंततः इसमें असफल ही रहे ।यादव परिवार में मुलायम सिंह यादव के एक भाई रामगोपाल यादव पर इस टूटन का ठीकरा फूटता नजर आया? उस दौरान जब समाजवादी परिवार में काफी आपसी द्वेष बढ़ा था तो कई बार मुलायम बेचारगी की स्थिति में खड़े दिखे थे। सारी कोशिशें असफल हो गई और अखिलेश यादव तथा शिवपाल यादव के रास्ते भी अलग अलग हो गए। शिवपाल यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का गठन किया और समाजवादी पार्टी पर अखिलेश यादव का एकाधिकार हो गया ।खास बात यह भी है कि चाचा एवं भतीजा दोनों श्री मुलायम सिंह यादव को अपना अपना संरक्षक एवं आदर्श बताते रहे ।सूत्रों के मुताबिक मुलायम के साथ काफी समय से परछाई की तरह रहने वाले शिवपाल यादव अखिलेश यादव को सियासी काल नजर आने लगे? शर्म तो तब आई थी जब दोनों के बीच वाद विवाद एवं धक्का-मुक्की की स्थितियां प्रदेश के सामने दृश्य मान हुई।वर्तमान की बात करें तो आज अखिलेश यादव ने बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन करके अपने प्रत्याशीयो को लड़ाने की कयावद जारी का रखी है। तो वही चाचा शिवपाल ने पीस पार्टी से मिलकर अपने प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतार दिया है। अभी जब मुलायम सिंह यादव मैनपुरी में अपना नामांकन करने गए तो यहां शिवपाल यादव ने अपने बड़े भाई का आशीर्वाद लिया। यह पहला मौका था जब श्री पाल आशीर्वाद लेकर ही वापस हो गए।एक समय था जब श्री यादव के मुख्य प्रस्तावक में छोटे भाई शिवपाल यादव का नाम प्रमुखता से आगे रहता था। दूसरी ओर अखिलेश अपने पिता के साथ नामांकन के समय डटे नजर आए। परिवार के अन्य सदस्य भी इस समय उपस्थित थे। मुलायम ने यहां कई सवालों का जवाब नहीं दिया। उन्होंने पहली बार मैनपुरी पार्टी कार्यालय पर उपस्थित कार्यकर्ताओं से भी दूरी बनाई और उन से बिना मिले लौट गए। जब बसपा सुप्रीमो मायावती के साथ मंच साझा करने की बात पूछी गई तो वहां भी उन्होंने कहा फैसला लेने के बाद कुछ कहेंगे। स्पष्ट है कि कहीं ना कहीं आज अपने ही परिवार में आपसी रिश्तो कि आपसी टकराव से आहत मुलायम संभवत भीष्म पितामह की भूमिका में जा पहुंचे हैं ?उनका हृदय परिवारिक टूटन से आहत है! लेकिन शायद वह अब कुछ दबंगई से कहने की स्थिति में नहीं है?मुलायम का प्रभावशाली परिवार जब एक साथ रहता था तो प्रत्येक चुनाव में समाजवादी वास्तव में चुनाव लड़ती नजर आती थी! लेकिन कहा गया है कि यदि परिवार को ही आगे बढ़ाने का प्रयास किया जाएगा तो महत्वाकांक्षाए कहीं ना कहीं जब बढ़ेंगी तो उन में टकराव तय हैं।इसी का शिकार हो गया प्रदेश का प्रभावशाली यदुवंश परिवार जो सैफई से फिरोजाबाद, लखनऊ, इटावा तक आज बस दिखता है अलग-अलग ??खास बात यह भी है कि शिवपाल ने फिरोजाबाद से अपने ही घर के जिगर के टुकड़े के सामने चुनावी चुनौती पेश कर दी है। जिसे उन्होंने कभी अपनी गोद में खिलाया होगा ।वैसे अभी भी राजनीत के माहिर खिलाड़ी मुलायम सिंह यादव ने अपने लाल अखिलेश यादव एवं भाई शिवपाल यादव के मद्देनजर अपने सियासी पत्ते नहीं खोले हैं? जिस पर लोगों की नजरे गड़ी हुई हुई हैं !वहीं दूसरी ओर बिहार में जेल काट रहे पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के घर में भी कलह का कोहराम मचा हुआ है ?बड़े बेटे तेज प्रताप एवं छोटे बेटे तेजस्वी यादव के बीच अब बयान तीर चल रहे हैं ।तेज प्रताप अपने ससुर को टिकट दिए जाने से बहुत नाराज हैं ।सनद हो कि तेज का अपनी पत्नी से विवाद चल रहा है। खबर यह भी है कि तेजप्रताप अपने कई खास लोगों को भी टिकट दिलवाने में नाकाम रहे हैं। उधर दूसरी और तेजस्वी यादव ने राष्ट्रीय जनता दल पर अपनी पूरी पकड़ बना रखी है। कहा जाता है कि उन्हें पिता लालू प्रसाद यादव एवं मां राबड़ी देवी का आशीर्वाद भी प्राप्त है ।जबकि दूसरी तरफ तेज प्रताप ने स्पष्ट कहा है कि मैंने पांडव बनकर कुछ सीटें अपनों को चुनाव लड़ने के लिए मांगी लेकिन उन्हें कौरवों की तरह दुत्कार दिया गया। पता चला है कि तेज प्रताप ने लालू -राबड़ी मोर्चा का गठन भी कर लिया है! उन्होंने धमकी दे डाली है कि यदि उनकी बात को तवज्जो नहीं दी गई तो लालू राबड़ी मोर्चा से उनके अपने लोग चुनाव में ताल ठोकेंगे ।वैसे पूर्व में लालू के साले साधु यादव के किस्से भी देश में खूब सुने जाते रहे हैं। कुल मिला के यहां भी दल एवं सत्ता की कुर्सी पर एकाधिकार जमाने को लेकर भाइयों के बीच आपसी रार बढ़ चुकी है ?उपरोक्त दोनों यदुवंशी परिवारों में परिजनों के बीच जारी यह महायुद्ध कहीं न कहीं लोकसभा चुनाव के महायुद्ध पर भारी पड़ता नजर आ रहा है? इसके साथ ही समाजवादी विचारधारा की बात करने वाले वरिष्ठ नेताद्वय के राजनीतिक दर्शन पर भी सवाल खड़े हो गए हैं ।क्योंकि समाजवाद सभी को एक साथ रहने की सीख देता है। चर्चा में कहा भी जाता है कि पैरों में पहने जाने वाले मोजे में समाजवाद रहता है। जबकि जूतों में समाजवाद कतई नहीं रहता। मोजे एक दूसरे किसी भी पैर में पहने जा सकते हैं। जबकि जूते कतई नहीं। स्पष्ट है कि समाजवाद के प्रभावशाली यदुवंशी परिवारों के बीच कौरव और पांडवों सरीखा महासंग्राम ठना हैं। कहीं लोकसभा चुनाव के महायुद्ध में यदुवंशी परिवारों के लिए घाटे का सौदा ना सिद्ध हो जाए ?जाहिर है कि यह चिंता मुलायम सिंह यादव एवं लालू प्रसाद यादव को जरूर होंगी? लेकिन करें क्या!! एक तरफ मुलायम भीष्म पितामह की भूमिका में जा पहुंचे हैं तो दूसरी तरफ लालू जी को उनके बेटे ही कलह का प्रसाद जेल तक पहुंचाने में जुटे हुए हैं? काश यह नेता अपने परिवार को आगे ना करके अपने अनुयायियों को आगे लाते तो आज उन्हें यह दिन ना देखना पड़ता !डॉ राम मनोहर लोहिया जी का समाजवाद सब को लेकर आगे चलने का समाजवाद है जबकि आज का समाजवाद कहीं न कहीं संपत्ति एवं संतति के बीच में जाकर घिर कर रहा गया है ?