संपादकीय: मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य एवं राजनीतिक पार्टियां: युगल किशोर यादव
जिस देश मे इस तरह की राजनीति हो कि सत्ता पक्ष के अच्छे कामों का भी विरोध करना है क्योंकि वो हमारा राजनैतिक विरोधी है और कहीं कोई अच्छा काम करके वो हमसे राजनीति मे आगे न निकल जाए वो देश कभी विश्व गुरू कैसे बन सकता है?यहां सत्ता मे रहते जिन योजनाओं का विरोध किया गया था और उन्हें जनविरोधी बताया गया था उन्हीं योजनाओं को सत्ता मे आने पर पूरी शक्ती से क्रियान्वयन में लाया गया।ऐ सब क्या है ?अगर ये सब ठीक ही थीं तो इतने दिन देश के नागरिकों को उस लाभ से केवल इसलिए वंचित किया गया क्योंकि आप विपक्ष मे थे?
पहले तो विपक्ष को फिर से परिभाषित करने की जरूरत है।अब चुनाव का समय है जिसमें सभी दल जनता से बड़ी बड़ी रैलियों के माध्यम से बड़े बड़े वादे कर रहे हैं ,ये रैलियां जो कि करोड़ों रूपये मे होती हैं (भौकाल बनाने के लिए )उन्हीं से भी देश के छोटे- मोटे गांव का कायाकल्प हो सकता है।पर ऐसा नहीं होगा।
केवल देश के लोगों को विभिन्न मुद्दों मे उलझाओ वोट लो बस यही हो रहा है अन्यथा जो भी काम करे उसके लिए सत्ता मे वापसी सहज है।लेकिन इस देश मे राजनेता लोगों के सेंटीमेंट का बड़ी चालाकी से दुर्पयोग करते हैं।हर चुनाव मे सभी दलों की हजारों भव्य रैलियां होती हैं जिनकी कोई जरूरत नहीं है ऐ सामान्य भी हो सकती हैं और इनके पैसों से हजारों गांव की दशा सुधारी जा सकती है पर ऐसा नहीं होगा।आज बेबस गांव वाले मूलभूत सुविधाओं जैसे पानी (बुन्देलखण्ड) से परेशान हैं पर उनकी सुनने वाला कोई नहीं है।इस पृष्ठभूमि मे पले बढ़े नौनिहालों का क्या होगा?क्या उनका संवैधानिक अधिकार नहीं है कि उनकी जरूरतों सरकार पूरी करे?कुछ लोग अपने को पिछड़ा गरीब बताते नहीं थकते ,अगर आप सच मे हैं तो बताइए आपने लोगों से अलग ऐसे लोगों के लिए क्या किया?अतः सभी दलों को इस ज्वलंत समस्या पर गंभीरता से विचार करना चाहिए ताकि देश के ऐसे लोगों की स्थिति मे भी सुधार हो सके।मित्रों से अपील है पोस्ट मे सार्थकता ढ़ूढें।
धन्यवाद।।
युगल किशोर यादव