अखिलेश जी मुलायम बनो! सियासी माया नहीं, अपनों को पहचानों? अपने तो अपने होते हैं
*अखिलेश जी मुलायम बनो! सियासी माया नहीं, अपनों को पहचानों? अपने तो अपने होते हैं….*
बसपा से गठबंधन !सपा के दामन में शूल तो बसपा को मिले फूल।
युवा जोश के साथ घर के बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद भी जरूरी।
कुत्सित बयानबाजी ने भी सपा किया सफा ।
*कृष्ण कुमार द्विवेदी राजू भैया*
?? सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव जी अपनों को पहचानो। अपनों के प्रति मुलायम बनो। सियासी माया में सफलता नहीं मिलती। मिलता है छलावा ?बसपा से गठबंधन सपा को आखिर मिला क्या? निम्न स्तरीय बयान बाजी ने भी सपा को सफा किया ।इसलिए आप समझे कि अपने तो अपने होते हैं…..!
संपन्न लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के मद्देनजर सपा एवं बसपा के महागठबंधन की हवा निकल गई। इसी के साथ रालोद भी निपट गया। लेकिन सबसे ज्यादा यदि किसी को घाटा हुआ तो वह है समाजवादी पार्टी। इस महागठबंधन ने सपा को सफा करके रख दिया ।जबकि बसपा की खाली झोली में 10 जीत के फूल आ गिरे।उत्तर प्रदेश में महत्वपूर्ण ताकत में शुमार की जाने वाली समाजवादी पार्टी आज लोकसभा चुनाव में दहाई की संख्या भी ना प्राप्त कर सकी। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव अथवा उनके रणनीतिकार इस पर चिंतन में मंथन कर रहे होंगे। जो स्थितियां सामने नजर आ रही हैं उसमें इस असफलता के लिए स्वयं सपा नेतृत्व जिम्मेदार नजर आ रहा है? यदि बात करें महागठबंधन की तो अखिलेश यादव ने चुनाव के दौरान हर मंच पर बसपा सुप्रीमो मायावती से आत्मिक व सम्मानित रिश्ता निभाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी !उनकी पत्नी डिंपल यादव ने मायावती के पैर छुए लेकिन बसपा सुप्रीमो के भतीजे ने सपा के बुजुर्गों का सम्मानित अभिवादन तक नहीं किया। अखिलेश ने यहां अपना दिल बड़ा किया और मायावती को ऐसा सम्मान दिया जैसे उन्होंने समाजवादी पार्टी को बसपा के चरणों में गिरवी रख दिया हो ?यह स्थिति समाजवादियों को बार-बार अखरी लेकिन वह चुप्पी साधे रहे।
समाजवादी विचारधारा के महामना मुलायम सिंह यादव ने इस महागठबंधन पर कभी भी मुहर नहीं लगाई? उन्होंने स्पष्ट कहा था कि इस समझौते की वजह से समाजवादी पार्टी प्रदेश में आधी सीटें तो बिना लड़े ही हार गई? युवा जोश अखिलेश ने अपने पिता की इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया आज उसका परिणाम सामने है। जहां बसपा चुनाव लड़ी सपाइयों ने वहां उसके प्रत्याशी को सपोर्ट किया। लेकिन जहां सपा प्रत्याशी चुनाव लड़े वहां पूरी तरह से बसपा का वोट बैंक सपा प्रत्याशी के पक्ष पर ट्रांसफर नहीं हुआ! यही नहीं पार्टी के अनुकूल महागठबंधन में सीटों के बंटवारे में भी अखिलेश अनुभवी मायावती के सामने शायद चूक गए ।खबर है कि सपा ने ऐसी सीटों पर ज्यादा चुनाव लड़ा जहां पर उसे पहले भी सफलता बड़ी मुश्किल से कभी हासिल हुई थी ।अथवा उसे सफलता नहीं मिली थीं?
समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में एक समय बहुत ही दमदार पार्टी मानी जाती थी ।लेकिन जब घर में टूटन पैदा हुई तो समाजवादी कुनबा टुकड़े टुकड़े में बिखर गया। जब यादव परिवार की एकता अनेकता में बदली तो दूसरे सियासी दुश्मन भी बीच में घुसकर दोस्त बन गए। मुलायम सिंह यादव ने जब तक बस चला ना तो अपने परिवार को टूटने दिया और ना ही अपने किसी परिजन को चुनाव में आखरी दम तक हारने दिया ।आज स्थिति क्या है? परिवार टूटा तो शिवपाल यादव ने अपनी पार्टी बना ली! संगठित परिवार में दो फाड़ हो गए !समाजवादी पार्टी में प्रदेश से लेकर ब्लॉक तक अलग अलग गुट हो गए? परिवार की आपसी लड़ाई में भाजपा ने यादव परिवार के एक एक योद्धा को अकेला करके लोकसभा चुनाव में पराजित दर पराजित कर दिया। स्वयं शालीन डिंपल यादव, धर्मेंद्र यादव तथा अक्षय जैसे अखिलेश के परिवारिक योद्धा चुनाव में खेत होकर रह गए।
अखिलेश जी विचार करें यदि आपका पूरा परिवार एक होता तो शायद आपको यह दिन नहीं देखना पड़ता। आपने अपने पिता एवं अपने चाचा पर भले ही विश्वास ना किया हो लेकिन राजनीति के क्षेत्र में अविश्वास का मुकुट लगा रखने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती पर आपको गहरा विश्वास नजर आया ?नतीजा सामने है।
अंत में मैं कृष्ण कुमार द्विवेदी राजू भैया अखिलेश यादव जी आपसे एक और सीधी लिखित खरी खरी बात कहना चाहूंगा। व्यक्ति के जीवन में संगत का बड़ा असर होता है। एक समय ऐसा था जब आप पूरे समाज को साथ में लेकर चलने का प्रयास करते थे। भले ही मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति में आपके कदम परंपरागत ढंग से कुछ आगे रहते रहे हो । लोकसभा चुनाव के दरमियान समाज के उच्च वर्ग पर दिए गए आपके बयान से भी आपको घाटा हुआ ।ऐसा कैसे हो सकता है कि आपका जिंदाबाद लगाने वाला व्यक्ति अथवा किसी जाति का आपका समर्थक आपके द्वारा ही भरे मंच से अपमानित किया जाए। और वह पूरे मन से समाजवादी बना रहे! यह शायद आपके बदले आचरण का ही प्रताप था कि ऐसी ही मानसिकता जिलों तक जा पहुंची? कई समाजवादी पार्टी के जनप्रतिनिधि जो पिछड़े वर्ग से संबंधित थे उन्होंने अपने ही दल के उच्च वर्ग के नेताओं को जमकर बुरा भला कहा ।कई यादव नेताओं ने तो एलानिया कह दिया कि समाजवादी पार्टी अहीरों की पार्टी है उसके बाद मुसलमानों की? इस में दूसरे वर्ग का क्या मतलब! ऐसी स्थिति में उच्च वर्ग का आपका अपना समर्थक या तो घर बैठ गया अथवा दूसरे दलों की ओर पलायन कर गया। तो कुछ आखिर तक अपमानित भाव में भी सपा में बने रहे।
अखिलेश जी इससे बचना होगा। नहीं तो सपा को भविष्य में भी सफा होने से कोई बचा नहीं पाएगा ।सियासी माया से सजग रहना होगा ।घर को तोड़ने वाली सियासी महामाया से सतर्क रहना होगा ।अपनों को पहचानना होगा। क्योंकि अपने तो अपने होते हैं ……अपनों से अपने होते हैं।