April 20, 2025
PicsArt_09-23-08.02.26.jpg

चौपाल(kkc) !भारतीय संस्कृति में जन जन का यह अटूट विश्वास है कि मृत्यु के पश्चात जीवन समाप्त नहीं होता।यहां जीवन को एक कड़ी के रूप में माना गया है जिसमें मृत्यु भी एक कड़ी है।प्राय: मृत व्यक्ति के संबंध में यह कामना की जाती है कि अगले जन्म में वह सुसंस्कारवान तथा ज्ञानी बने।इस निमित्त जो कर्मकांड संपन्न किए जाते हैं उनका लाभ जीवात्मा को श्रद्धा से किए गए क्रियाकर्मों के माध्यम से मिलता है।मरणोत्तर संस्कार , श्राद्ध कर्म से उनका तर्पण किया जाता है जिससे आत्माएं प्रसन्न रहें और उन्हें शांति मिले।भाद्रपद की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक कुल १६ दिन की अवधि पितृपक्ष कहलाती है। इसी अवधि में पितरों के प्रति श्रद्धा के प्रतीक श्राद्धों का आयोजन घर घर में होता है।विश्वास के साथ किए गए श्राद्ध कर्म में पिंडो पर गिरी हुई जल की नन्हीं नन्हीं बूंदों से पशु पक्षियों की योनि में पड़े हुए पितरों का पोषण होता है। जिस कुल में जो बाल्यकाल में ही मृत्यु को प्राप्त हो गए हो वह सब मार्जन के जल से ही तृप्त हो जाते हैं।श्राद्घ के साथ मुख्य रूप से जुड़ी व्यक्ति की श्रद्धा और भावना ही है , इसलिए आज के दिन परिवार के व्यक्तियों से अपेक्षा की जाती है कि वे काम,क्रोध,लोभ , मोह एवं अंधकार से दूर रहकर पुनीत कार्य करें।श्राद्ध कर्म में खर्च किया जाने वाला धन भी ईमानदारी की कमाई का होना चाहिए।अपने पितरों को पवित्र मन से तर्पण करने हेतु वर्ष में दो ही दिन शुभ माने गए हैं प्रथम मृत्यु तिथि पर दूसरे श्राद्ध के अवसरों पर उसी तिथि पर जिस दिन वे देवलोक को गए हों।जो भी किया जाए श्रद्धा से किया जाए क्योंकि श्रद्धा से किया गया कर्म ही श्राद्घ कहलाता है।आज के युग में अपने पूर्वजों,अपने माता पिता एवं उनके साथ बिताए हुए मधुर पलों को स्मरण करने का समय किसी के पास नहीं बचा है।कुछ लोग पितृपक्ष के श्राद्ध आदि कर्मकांड को धार्मिक अनुष्ठान मानते हैं और इसे अंधविश्वास कह कर के हंसी भी उड़ाते हुए देखे जा रहे हैं।जबकि मेरा “आचार्य अर्जुन तिवारी” का मानना है कि पितृपक्ष को यदि कर्मकांड अथवा धार्मिक अनुष्ठान ना भी मानें तो भी अपने अतीत अर्थात अपने पूर्वजों को श्रद्धा से स्मरण करते हुए स्वयं परिवार सहित उत्सव तो मना ही सकते हैं।यदि इसमें अपने मित्रों के अतिरिक्त किसी जरूरतमंद को भी सम्मिलित कर लिया जाए तो इस पर्व का महत्व और बढ़ जाता है।अत: बिना किसी दबाव एवं मजबूरी के सहर्ष अपने पूर्वजों के नाम पर श्राद्ध या उनकी निमित्त किए गए दान से स्वयं के मन को असीम शांति मिलती है।व्यक्ति स्वयं को कृतार्थ अनुभव करने लगता है।परंतु आज के आधुनिक युग में अधिकतर (स्वयं को आधुनिक मानने वाले) लोग श्राद्घ को भी एक भार समझ कर निपटाने का प्रयास करते हैं। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए।जिन पूर्वजों ने हमको अपार संपत्ति प्रदान की और अपना सुख भोग करके पितृलोक को चले गए उनके प्रति श्रद्धा भाव का ना होना मनुष्य की विकृत मानसिकता ही कही जा सकती है।श्राद्ध पक्ष के पावन दिनों में अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रकट करते हुए श्रद्धा के साथ तर्पण / मार्जन एवं पिंडदान आदि अवश्य करना चाहिए ,ऐसा करने पर पितरों की कृपा प्राप्त होती है और मनुष्य सुख का उपयोग करता है।अन्यथा परिवार में अनेक प्रकार की व्याधियां उत्पन्न हो जाती है।इन सभी व्याधियों से बचने के लिए मनुष्य को यथा समय अपने पितरों के लिए श्रद्धा अर्पित अवश्य करनी चाहिए।श्राद्ध पक्ष में श्रद्धा पूर्वक पितरों का स्मरण करते हुए श्रेष्ठ जीवन का अभ्यास करना मात्र कर्मकांड ही नहीं बल्कि वर्तमान युग की आवश्यकता भी है।आज की पीढ़ी को इस सत्य को अनुभव करने की आवश्यकता है।

आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Discover more from KKC News Network

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading