बहुविवाह, हलाला, मुताह और मिस्यार पर 24 जनवरी को सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट
तीन तलाक को अवैध करार करने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) मुस्लिम समुदाय से जुड़े बहुविवाह, हलाला, मुताह और मिस्यार (Halala, Polygamy, Mutah, Misyar) पर सुनवाई करने जा रहा है, जिसके लिए 24 जनवरी की तारीख मुकर्रर हुई है. यह सुनवाई बीजेपी नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) की जनहित याचिका पर होगी. याचिका में हलाला और बहुविवाह को रेप जैसा अपराध घोषित करने की मांग की गई है, जबकि बहुविवाह को संगीन अपराध घोषित करने की मांग की गई है.
बीजेपी नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने अपनी याचिका में बहुविवाह, निकाह हलाला, निकाह मुताह (शियाओं के बीच अस्थायी विवाह) और निकाह मिस्यार (सुन्नियों के बीच अल्पकालिक विवाह) की प्रथा को असंवैधानिक करार देने की मांग की है. जिसके मुताबिक यह प्रथाएं संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करते हैं. उपाध्याय के मुताबिक अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता का अधिकार देता है, अनुच्छेद 15 धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को रोकता है और अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संरक्षण का अधिकार प्रदान करता है.
क्या है निकाह हलाला ?
अगर मौजूदा मुस्लिम पर्सनल लॉ के प्रावधानों को देखें तो इनके मुताबिक अगर किसी मुस्लिम महिला का तलाक हो चुका है और वह उसी पति से दोबारा निकाह करना चाहती है, तो उसे पहले किसी और शख्स से शादी कर शारीरिक संबंध बनाने पड़ते हैं, और फिर उससे तलाक लेकर अलग रहने की अवधि (इद्दत) पूरा कर लेती है, इसके बाद ही वह पहले पति से शादी कर सकती है, इसे निकाह हलाला कहते हैं.
क्या है मुताह और मिस्यार
मुताह विवाह एक निश्चित अवधि के लिए साथ रहने का करार होता है और शादी के बाद पति-पत्नी कॉन्ट्रेक्ट के आधार पर एक अवधि तक साथ रह सकते हैं. साथ ही यह समय पूरा होने के बाद निकाह खुद ही खत्म हो जाता है. यह एक तरह का कॉन्ट्रैक्ट ही है, और उसके बाद महिला तीन महीने के इद्दत अवधि बिताती है. मुताह निकाह की अवधि खत्म होने के बाद महिला का संपत्ति में कोई हक नहीं होता है और ना ही वो पति से जीविकोपार्जन के लिए कोई आर्थिक मदद मांग सकती है. वहीं सामान्य निकाह में महिला ऐसा कर सकती है. मुताह का अधिकार सिर्फ पुरूषों को ही है महिलाएं मुताह नहीं कर सकतीं. मुताह और मिस्यार में यही फर्क है कि मुताह शिया और मिस्यार सुन्नी मुस्लिमों की प्रथा है.