कर्तव्य पथ पर सर्वोच्च बलिदान के साथ सर्वस्व न्यौछावर
*कर्तव्य पथ पर सर्वोच्च बलिदान के साथ सर्वस्व न्यौछावर*
*प्रहलाद तिवारी*
कर्तव्य पथ पर डटा खाकी का जवान, बारिश में भीगता, सर्दी में ठिठुरता और गर्मी में पसीने से तर बतर, घर से दूर रहकर अपना त्यौहार भी नहीं मनाता। होली का हुड़दंग न हो, दीवाली में आप मजे से पटाखे दगा सके, आपकी हर छोटी सूचना पर तत्काल आपके सामने हाजिर होता, सबकी रौब सुनता हुआ, अफसरों के सामने बिना गलती के डांट खाता हुआ और नेताओं की हुड़की का शिकार खाकी का जवान आपको महफूज करता है, आपकी सुरक्षा करता है। सही कार्रवाई करने पर लाइन हाजिर होने से लेकर निलंबन तक उसका पुरस्कार होता है, फिर भी वह पूरे मनोयोग से नागरिक सुरक्षा के प्रथम कर्तव्य पर अडिग रहता है। अपराधी को पकड़कर वह सलाखों के पीछे लाता है लेकिन एक फोन पर उसको छोड़ना उसकी मजबूरी बन जाती है। उसकी वीरता पर संदेह पर नहीं, उसके कर्तव्य पालन पर शक नहीं लेकिन कही न कही वह मजबूर होता है। उसकी इसी मजबूरी को अपराधी अपना रसूख समझ जाते है और कानपुर जैसा कांड करने में उनको तनिक भी देर नहीं लगती है। कानपुर में सीओ समेत आठ पुलिस अफसरों की शहादत ने सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए है। अपराधियों पर नकेल कसने का दावा हर सरकार करती है लेकिन कानपुर जैसी घटनाएं हर सरकार के राज में होती रही है। कुख्यात अपराधी विकास दुबे की अपराध में इंट्री भी राजनीति से हुई बताई जा रही है।
आसपास के तीन दर्जन से अधिक गांवों में विकास दुबे का राज चलता है। यहां दबिश डालने के लिए कम से कम दस ट्रक फोर्स आनी चाहिए थी। गाँव के बाहर ही JCB लगाकर पुलिस को रोकने की कोशिश सिस्टम को कटघरे में खड़ी करती है। विकास की सुरक्षा में सीसीटीवी कैमरे लगे थे, इनकी संख्या 60 से अधिक बताई जा रही है। यह संभव ही नहीं है कि बिना भेदिए के पुलिसिया तैयारी की जानकारी हिस्ट्रीशीटर विकास दूबे को मिल पाई होगी। अब गिरफ्तारियां होंगी। विकास की भी ऐसी-तैसी होगी। लेकिन, जांच उनकी भी होनी चाहिए जिन्होंने इस कार्रवाई को लीक किया। क्योंकि यह कोई आतंकवादी या नक्सलवादी हमला नहीं था। यह रुपयों के लालची लोगों की कारस्तानी है, जिन्होंने पुलिस की दविश देने वाली सारी जानकारी अपराधी के हवाले कर दी।सीओ समेत आठ जांबाज पुलिस कर्मी सर्वोच्च बलिदान कर अपना सब कुछ न्यौछावर कर गए।