November 21, 2024

इस पृथ्वी पर जन्मा प्रत्येक जीव को स्वतंत्रता का अधिकार है एवं प्रत्येक जीव स्वतंत्र रहना भी चाहता है | पराधीनता के जीवन से मृत्यु अच्छी है | मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी की चौपाई “पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं” यह प्रमाणित करती है कि पराधीनता में रहकर मोहनभोग भी खाने को मिल जाय तो वह तृप्ति नहीं मिल पाती जो संतुष्टि स्वतंत्रता की सूखी रोटी में प्राप्त होती है | हमारा देश भारत वर्षों पराधीन रहा | धीरे – धीरे दमनकारी नीतियों के विरुद्ध चिन्गारी भड़कने लगी और उसे हवा दिया हमारे देश के अमर युवा क्रांतिकारियों ने | चिनगारी को हवा का समर्थन मिला तो वह विकारल अग्नि का स्वरूप लेकर पूरे देश में फैल गयी | आजाद , भगतसिंह , महारानी लक्ष्मीबाई , मंगल पांडे , सुखदेव , (वे अनेक अमर शहीद दिव्यात्मा जिन सबका नाम भी इतिहास में नहीं है ) आदि महापुरुषों ने इस संग्राम में अंग्रेजों के छक्के छुड़ाते हुए अपना आत्म बलिदान करके स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया | ऐसे में देश महान आत्मा सुभाष चन्द्र बोश को कैसे भूल सकता है जिनकी “आजाद हिन्द फोज” ने इस महासंग्राम में अपना सब कुछ लुटा दिया | अनेक बलिदानियों के संयुक्त प्रयास से अंग्रेज हमारा देश छोड़ने को विवश हो गये और १५ अगस्त सन् १९४७ को हमारा देश स्वतंत्र हो गया | १५ अगस्त सन् १९४७ की सुबह आसमान से सूरज भारतीयों के लिए एक नया जीवन लेकर प्रकट हुआ और लोगों ने लम्बे समय के बाद बहुत कुछ गंवा करके खुली हवा में सांस ली |*

*आज हम अंग्रेजों की दासता से तो स्वतंत्र हो गये हैं परंतु यह स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद भी चारों ओर पराधीनता ही दिखाई पड॒ती है | अंग्रेजों के चले जाने के बाद भी क्या हम आजाद हुए ?? संविधान की दृष्टि से देखा जाय तब तो हम आजाद कहे जा सकते हैं परंतु समाजिक , मानसिक एवं राजनीतिक रूप से हम आज भी गुलाम ही हैं | आज भी हमारे सर्वोच्च सदन में गुलामी की प्रतीक अंग्रेजी भाषा में ही कानून पारित किये जाते हैं | देश के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति जी को भी आजाद भारत में अंग्रेजी में अपना अभिभाषण देने की आजादी ही हमारी गुलामी का प्रतीक है | मैं “आचार्य अर्जुन तिवारी” देश के रणनीतिकारों से पूछना चाहूँगा कि क्या हम वास्तव में आजाद हैं ?? संसद की बात छोड़ दिया जाय तो सबसे हास्यास्पद दृश्य तो भारतीय न्यायालयों का है , जहाँ बहस होते समय अधिवक्ता ने क्या बहस की और न्यायाधीश ने क्या निर्णय दिया यह उस बेचारे री समझ में ही नहीं आता जिसका मामला होता है क्योंकि ऊँची अदालतों में अंग्रेजी बोलना गर्व की बात एवं अपनी राष्ट्रभाषा में निरणय सुनाना शायद अपमान की बात लगती होगी | आज हम आजाद हेते हुए भी गुलामी का जीवन जी रहे हैं | इसके लिए जिम्मेदार भी हम सभी ही हैं।हमारे देश को स्वतंत्र कराने के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने वाले अमर शहीदों के सपनों का भारत क्या यही है ??? यह विचारणीय विषय है।

सभी चौपालप्रेमियों को आज दिवस की मंगलमय कामना।

आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश) 9935328830

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed

error: Content is protected !! © KKC News

Discover more from KKC News Network

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading