रामायण को ऊर्जा का आधार बनाकर शक्ति जागृत करें युवा :हरिओम तिवारी
लखनऊ: हिन्दनगर स्थित शनि मंदिर में शुक्रवार को एक दिवसीय भव्य राम कथा का आयोजन लखनऊ गुडस ट्रांसपोर्टर एसोसिएशन द्वारा संपन्न हुआ। कथा वाचक राघवचारण अनुरागी हरिओम तिवारी ने श्रीराम कथा की अमृत वर्षा की। उन्होंने कहा कि रामायण, समस्त ग्रंथ मात्र का स्वरूप है। उन्होंने कहा कि परमपिता की असीम कृपा से आज शनि मंदिर परिसर में श्रीराम कथा करने का परम सौभाग्य मिला
हरीओम तिवारी ने रामकथा को आधुनिक समाज के लिए परम आवश्यक बताया। उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजन आज के समय में बेहद जरूरी और हमें श्री राम की कथा भी सुननी चाहिए। उन्होंने माता कैकेयी और भरत के उदाहरण से बताया कि राम जितना कौशल्या से स्नेह और सम्मान करते है। उतना ही वह कैकेयी का भी करते हैं।
श्री राम चरित्र मानस कथा के दौरान श्री राम जी के प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए कथा व्यास हरिओम तिवारी जी ने बताया कि जिस में भरत जैसा तप, भरत जैसा त्याग और भरत जैसी निष्काम भावना है, उसको भगवान विशेष प्यार देते हैं, उसके ऊपर हमेशा अपना वरदहस्त बनाए रखते हैं। अर्थात ऐसे भक्त पर प्रभु अपनी कृपा का हाथ सदा बनाए रखते हैं। एक रोचक प्रसंग सुनाते हुए महाराज ने बताया कि भरत जनकपुरी से अयोध्या पहुंचे। जहां उन्हें श्रीराम नहीं मिले। जानकारी जुटाने पर उन्हें मालूम हुआ कि राजा दशरथ ने कैकेई माता के वचनों के चलते श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास दे दिया है। जिसके बाद भरत अपनी माता कैकेई से नाराज होकर प्रजा सहित वन के लिए निकल पड़े। भरत के आने की सूचना पर लक्ष्मण क्रोधित हो जाते हैं। जिन्हें श्रीराम अपने वचनों से लक्ष्मण को भरत के प्रेम के विषय में अवगत कराते हैं। वन में श्रीराम से मिलने के बाद भरत उनसे वापस अयोध्या चलने का आग्रह करते हैं। वहीं पिता के वचनों का पालन करते हुए श्रीराम ने अयोध्या चलने से साफ इंकार कर दिया। इसके बाद भरत श्रीराम की चरण पादुका लेकर अयोध्या वापस आ गए। जहां लाकर चरणपादुका को सिंहासन पर रख दिया। साथ ही प्रतिज्ञा ली कि भगवान श्रीराम के अयोध्या वापस नहीं आने तक वह जमीन पर ही सोएंगे।श्रीराम कथा में भरत मिलाप का वर्णन सुन सभी भाव विभोर हो गए।