शांति स्वभाव बने चेष्टा नही:राघवचरणानुरागी हरिओम तिवारी

शांति स्वभाव बने चेष्टा नही। उक्त बातें कथावाचक हरिओम तिवारी जी महाराज ने लखनऊ के राजाजीपुरम स्थित एसकेडी स्कूल के सामने बने पार्क में चल रहे दो दिवसीय मानस शांति राम कथा के प्रथम दिन मंगलवार को अपने अमृत वचन में कहा। कथा स्थल पर उनको सुनने के लिए श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। “तुम्हीं मेरी नैया किनारा तुम्हीं हो मेरी ज़िंदगी का साहारा तुम्हीं हो” जैसे भजन पर श्रद्धालुओं में काफी उत्साह नजर आया। कथा के दौरान भक्ति भजनों पर महिलाएं-पुरुष झूमते नजर आये
उन्होंने कहा कि जीव कर्म करता है अंत मै आनंद प्राप्ति और सुख के लिये लेकिन क्या संसार के पदार्थ मैं सुख है यदि होता तो जीव क्यूँ विकार ग्रस्त होता इसका अभिप्राय है संसार के पदार्थ मै नही अपितु भगवान की भक्ति ,कथा प्रेम मै ही जीव को आनंद प्राप्त हो सकता है . लेकिन आज कथा व्यापार और धन अर्जन का साधन बनती जा रही इससे हमारे सनातन धर्म को नुक़सान हो रहा है इसको रोकना सिर्फ़ युवा के कंधो पर है . हमें आगे आना पड़ेगा कथा हमें नवजीवन प्रदान करती है . कथा को आगे बढ़ाते हुए कथा व्यास जी महाराज ने कर्म पर प्रवचन करते हुए कहा कि भाग्य के भरोसे तो कुझ परन्तु कर्म से हम सब कूब कुझ प्राप्त कर सकते है इसलिये तुलसी दास जी ने कर्म की प्रधानता दी है ।उन्होंने बताया कि प्रभु की कथा श्रवण से व्यक्ति भव सागर से पार हो जाता है। जीव में भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य के भाव उत्पन्न होते हैं। इसके श्रवण मात्र से व्यक्ति के पाप पुण्य में बदल जाते हैं। विचारों में बदलाव होने पर व्यक्ति के आचरण में भी स्वयं बदलाव हो जाता है।
