“चौपाल परिवार” की ओर से आज का प्रात: संदेश,विश्वकर्मा पूजा पर विशेष
🛠️ विश्वकर्मापूजा” पर विशेष 🛠️
साथियों, सनातन धर्म इतना वृहद है कि नित्य किसी न किसी पर्व का एक नया दिन होता है।एक तरफ तो सभी सनातनधर्मी अपने पितरों को श्रद्धा से याद करके उनका तर्पण / श्राद्ध आदि कर रहे हैं।तो वहीं दूसरी ओर आज ही सृष्टि का सृजन एवं निर्माण करने वाले “भगवान विश्वकर्मा का पूजन” (१७ सितम्बर) भी पूरे धूमधाम से देश भर में मनाया जा रहा है।विश्वकर्मा का उल्लेख वेदों से लेकर पुराणों तक देखने को मिलता है।आज तक कई विश्वकर्मा होने की भी पुष्टि होती रही है।तो सर्वप्रथम यह जान लिया जाय कि विश्वकर्मा हैं क्या ??? वेदों में कहा गया है :-“विशवं कृत्स्नं कर्म व्यापारो वा यस्य सः” अर्थातः जिसकी सम्यक् सृष्टि और कर्म व्यपार है वह विश्वकर्मा है।यही विश्वकर्मा प्रभु है, प्रभूत पराक्रम-प्रतिपत्र, विश्वरुप विश्वात्मा हैं।वैसे तो विश्वकर्मा भगवान के लिए भिन्न – भिन्न मान्यताये देखने को मिलती हैं ! वेदों में इन्हें सूर्य एवं इन्द्र भी कहा गया है , कहीं इन्हें प्रजापति भी कहा गया है परन्तु स्कंद पुराण प्रभात खण्ड के निम्न श्लोक की भांति किंचित पाठ भेद से सभी पुराणों में यह श्लोक मिलता हैः— बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी !प्रभासस्य तस्य भार्या बसूनामष्टमस्य च !! विश्वकर्मा सुतस्तस्यशिल्पकर्ता प्रजापतिः !!! अर्थात :– महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना जो ब्रह्मविद्या जानने वाली थी वह अष्टम् वसु महर्षि प्रभास की पत्नी बनी और उससे सम्पुर्ण शिल्प विद्या के ज्ञाता प्रजापति विश्वकर्मा का जन्म हुआ।बिना विश्वकर्मा जी के सृष्टि के निर्माण की परिकल्पना भी नहीं की जा सकती ! इन्द्र का स्वर्ग , रावण की लंका , कृष्ण की द्वारिका , पांडवों के इन्द्रप्रस्थ एवं हस्तिनापुर तथा भगवान जगन्नाथ का मंदिर एवं उनके विग्रह विश्वकर्मा जी की शिल्पकारी के उदाहरण हैं।
आज पुरे देश में ही नहीं वरन् विश्व में विश्वकर्मा पूजा की धूम है ! परंतु कुछ लोग आज (१७ सितम्बर) को “विश्वकर्मा जयंती” कहने लगते हैं जो कि बिल्कुल उचित नहीं है।विश्वकर्मा पूजा एवं उनकी जयंती में अन्तर है।अधिकतर लोग जानकारी के अभाव में आज को ही भगवान विश्वकर्मा की जयंती कहकर सम्बोधित करते हुए देखे जा सकते हैं।ऐसे सभी बंधुओं से मैं “आचार्य अर्जुन तिवारी” कहना चाहूँगा कि भगवान विशवकर्मा जी की वर्ष मे कई बार पुजा व महोत्सव मनाया जाता है।जैसे :- भाद्रपद शुक्ला प्रतिपदा , अन्नकुट (गोवर्धन पूजा) दिपावली से अगले दिन भगवान विश्वकर्मा जी की पुजा अर्चना (औजार पूजा) , एवं मई दिवस मई में ऋषि अंगिरा जयन्ति होने से विश्वकर्मा-पुजा महोत्सव मनाया जाता है। जब कि इन सभी आयोजनों में से एक भी विश्वकर्मा जी की जयंती नहीं है।विश्वकर्मा जी के अवतरण से सम्बंधित उल्लेख हमें ग्रंथों से प्राप्त होता है कि :– माघे शुक्ले त्रयोदश्यां दिवापुष्पे पुनर्वसौ ! अष्टा र्विशति में जातो विश्वकर्मा भवनि च !! अर्थात :- धर्मशास्त्रों में माघ शुक्ल त्रयोदशी को विश्वकर्मा जयंती बताया गया है।परंतु ज्ञान के अभाव में प्राय: लोग १७ सितम्बर को ही भगवान विश्वकर्मा का जन्मोत्सव (जयन्ती) बताकर मनाते हैं।इसका मुख्य यह है कि आज के लोग अपने धर्मग्रंथों के पठन – पाठन से दूर होते चले जा रहे हैं।यदि धर्मग्रंथों का अध्ययन किया जाय तो यह भ्रम की स्थिति समाप्त हो जाय , परंतु आज यही नहीं हो पा रहा है।
“आज भी विश्व का सृजन भगवान विश्वकर्मा जी की कृपा से ही हो रहा है ! हम पर इनकी कृपा सदैव बरसती रहे।सभी चौपाल प्रेमियों को आज दिवस की मंगलमय कामना।”
लेखक-आचार्य अर्जुन तिवारी प्रवक्ता-श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा संरक्षक-संकटमोचन हनुमानमंदिर बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी(उत्तर-प्रदेश)9935328830