November 21, 2024

चौपाल ! हमारा देश भारत विविध पर्वों एवं त्यौहारों का देश है!विभिन्न संस्कृतियों को अपने आप में समेटे हुए भारत देश में समय समय पर अनेकों त्यौहार आम जनमानस को अपार खुशियाँ प्रदान कर जाते हैं!सनातन संस्कृति के प्रत्येक त्यौहारों (पर्वों) में वै ज्ञान िकता एवं पौराणिक इतिहास छुपा हुआ है।वैसे ही एक पर्व है :- “मकर – संक्रान्ति”। मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है जो विभिन्न नामों से लगभग पूरे भारत देश में मनाया जाता है। इसे मनाने के पीछे पौराणिक मान्यता है कि – जिस प्रकार मनुष्य के लिए प्रकृति ने दिन एवं रात्रि की व्यवस्था की है उसी प्रकार यह व्यवस्था देवताओं के लिए भी है | दिन सदैव से सकारात्मक एवं रात्रि को नकारात्मकता के रूप माना गया है। रात्रि को आलस्य , थकान एवं निद्रा के लिए जाना जाता है तो दिन को ऊर्जा स्वरूप कहा गया है। उसी प्रकार देवताओं की रात्रि एवं दिन छ: – छ: महीनों की होती है।देवताओं की रात्रि को “दक्षिणायन एवं दिन को “उत्तरायण” कहा गया है।चूंकि दक्षिणायन देवताओं की रात्रि है तो देवता सुप्तावस्था में होते हैं और शुभकर्मों का वह फल नहीं मिल पाता जो कि मिलना चाहिए।इसीलिए हमारे मनीषियों ने शुभकर्मों के लिए “उत्तरायण” (देवताओं के दिन) को अधिक शुभ फलदायी कहा है।जब सूर्य धनु राशि से निकलकर “मकर राशि” में प्रवेश करता है तो “उत्तरायण” का प्रारम्भ होता है अर्थात यह देवताओं के जगने का दिन होता है।वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी के दो भाग हैं दक्षिणी गोलार्ध एवं उत्तरी गोलार्ध।जब सूर्य दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश करता है तो उत्तरायण कहा जाता है।इसे सूर्योपासना के लिए विशेष माना गया है।आज मकर संक्रान्ति का यह महापर्व सम्पूर्ण भारत देश में विभिन्न रूपों एवं विभिन्न नामों से अपने – अपने रीति – रिवाजों के अनुसार मनाया जा रहा है।पंजाब हिमाचल प्रदेश हरियाणा एवं दिल्ली में इसे “लोहड़ी” के नाम से जाना जाता है।तमिलनाडु में “पोंगल” एवं आन्ध्र प्रदेश , केरल, कर्नाटक एवं महाराष्ट्र में “संक्रान्ति तो बिहार एवं उत्तर-प्रदेश में “खिचड़ी पर्व” के रूप में विशेष रूप से मनाया जाता है।खिचड़ी के विषय में मैं “आचार्य अर्जुन तिवारी” बताना चाहूँगा कि खिचड़ी का अर्थ है जहाँ विभिन्न संस्कृतियां एकरूपता को प्राप्त हो जायं वही खिचड़ी है।खिचड़ी पर्व का शुभारम्भ भारत के उत्तर – प्रदेश के गोरखपुर से प्रारम्भ हुआ।गोरखपुर के योगी बाबा गोरखनाथ जी को भगवान शिव का अंशावतार माना गया है। जब भारत पर अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया तो योगी गोरखनाथ जी योगियों की विशाल सेना के साथ उसका मुकाबला करने लगे।लड़ते – लड़ते भोजन बनाने का समय न मिलता।बिना भोजन के योगीजन दुर्बल होने लगे।तब योगी गोरखनाथ जी ने एक नयी युक्ति निकाली और रसोईये को आदेश दिया कि एक ही बर्तन में दाल, चावल, सब्जी आदि डालकर भोजन सिद्ध कर लें।इस प्रकार मकर संक्रान्ति के दिन एक नया व्यंजन बनकर तैयार हुआ और गोरखनाथ जी ने उसे “खिचड़ी” नाम दिया।उस खिचड़ी को खाकर योगियों को एक नई ऊर्जा प्राप्त हुई एवं समय की बचत भी हुई। तब से उत्तर- प्रदेश एवं बिहार में मकर संक्रान्ति के दिन खिचड़ी बनाने की परम्परा प्रारम्भ हुई। उत्तर – प्रदेश के गोरखपुर में महायोगी बाबा गोरखनाथ का सिद्ध स्थान एवं तपोस्थली विद्यमान है।जहाँ आज भी “मकर – संक्रान्ति” के दिन विशाल मेला लगता है और भक्तजनों के द्वारा बाबा गोरखनाथ जी को खिचड़ी चढाने की एवं खिचड़ी बनाकर खाने की परम्परा चली आ रही है।

जहाँ विभिन्न खाद्यपदार्थ एक ही बर्तन में मिलकर एक स्वादिष्ट भोजन परोसे वही है खिचड़ी।अर्थात जहाँ विभिन्न संस्कृतियाँ एक में मिलकर बाहर निकलें वही है महान देश भारत।

सभी चौपालप्रेमियों को आज दिवस की मंगलमय कामना।

आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830

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