November 21, 2024

[आचार्य अर्जुन तिवारी की कलम से]

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दीपोत्सव पर्व : पंचपर्वों का तीसरा एवं मुख्य पर्व है दीपावली ! भारत त्यौहारों का देश है , वैसे तो यहाँ नित्य ही त्यौहार मनाये जाते हैं परंतु होली , विजयादशमी एवं “दीपावली” मुख्य पर्व के रूप में आदिकाल से मवाये जाने वाले त्यौहार हैं।दीपावली मनाये जाने के कई कारण हमारे ग्रन्थों में वर्णित है जैसे देवासुर संग्राम में देवताओं की विजय , नरकासुर पर भगवान श्रीकृष्ण की विजय , समुद्र मन्थन से लक्ष्मी जी का प्राकट्य आदि।परंतु ऐसी लोकमान्यता है कि आज के ही दिन मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्री राम चौदह वर्षों के वनवास के उपरान्त अयोध्या लौटे थे और सम्पूर्ण अयोध्यावासियों ने दीपमालिका जलाकर उत्सव मनाया था।दीपावली सम्पूर्ण विश्व में अनेक नामों से मनाया जाता है।मुख्यत: यह पर्व “असतो मा सदगमय , तमसो मा ज्योतिर्गमय” अर्थात :- असत्य से सत्य की ओर एवं अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला पर्व है।दीपावली स्वयं में सांस्कृतिक एवं धार्मिक के साथ – साथ प्राकृतिक रहस्यों को भी स्वयं में समेटे हुए है।दीपावली जब मनायी जाती है उस समय वर्षाऋतु का समापन एवं शीतऋतु का प्रारम्भ हो जाता है।बरसात के प्रभाव से गंदी हो चुकी नदियों का जल स्वच्छ हो जाता है।इसके अतिरिक्त दूर देश में रह रहे परिवारी जन इसी बहाने अपने देश / गाँव में आकर अपने समाज के साथ यह प्रकाशपर्व मनाते रहे हैं।जिससे आपसी सामंजस्य , स्नेह अक्षुण्ण बना रहता है।इन्हीं त्यौहारों के माध्यम से परिवार इकट्ठा होता रहा है। इसके अतिरिक्त यह पर्व समाज को भी जोड़ता रहा है।अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला पर्व मात्र धरती को ही नहीं बल्कि हृदय में व्याप्त कल्मष को भी मिटाने वाला रहा है।आज आधुनिकता के रंग में रंग चुके समाज में जिस प्रकार विकृतियाँ बढ़ी हैं , लोगों में ईर्ष्या , द्वेष की वृद्धि हुई है , आपसी सामंजस्य बिगड़े हैं , उनका प्रभाव त्योहारों पर भी स्पष्ट दिखाई पड़ता है।अपने ही परिवार से अलग होकर अपना घर संसार अलग बसाने वाले आज त्योहारों पर भी अपने बूढ़े मां बाप एवं परिवारी जनों से नहीं मिलना चाहते हैं।आपस में समरसता फैलाने वाले इस त्यौहार पर भी लोगों में निष्कपटता नहीं देखने को मिलती है।आधुनिकता के रंग में आज सभी त्यौहार रंगे हैं जिसके कारण समाज में अनेक प्रकार की बुराइयां फैली है।बाजारों में धोखाधड़ी एवं नकली सामानों की बिक्री बढ़ गई है।जिस प्रकार ढोंगी लोग दिव्य वेशभूषा बनाकरके स्वयं को पूजवाते है,ठीक उसी प्रकार बाजारों में आकर्षक रूप में विद्यमान अनेक खाद्य सामग्रियों एवं त्यौहार में प्रयुक्त होने वाली अन्यान्य सामग्रियां मानव समाज को धोखा ही दे रही हैं।नकली खाद्य पदार्थों को खा करके कितने लोगों का त्यौहार अच्छा बन रहा है यह आज के समाज में स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है।मैं सिर्फ इतना ही निवेदन करना चाहूंगा की खूब भव्यता के साथ अपना त्यौहार मनाया जाए लेकिन हमारी जो पुरातन सामग्रियां रही हैं उनको भुला कर के हम नवीन सामग्रियों के दुष्परिणाम से भी सचेत रहें।केमिकल से बनी हुई मोमबत्ती जलाने से दीपावली की भव्यता नहीं बढ़ती है दीपावली की भव्यता थी दीए जलाने से।दीए जलाने का एक सुखद परिणाम और होता था की दीए बनाने वालों की रोजी-रोटी चला करती थी जो कि आज लगभग बंद हो गई हैं।आज यह आवश्यकता है कि हम अपने त्यौहारों को भव्यता के साथ मनाएं , परंतु अपनी पुरातन मान्यताओं को ना भूलते हुए मिट्टी के दीए जलाकर के गणेश लक्ष्मी का पूजन करके इस त्यौहार का लाभ लें।

*सभी चौपाल प्रेमियों को आज शुभ दिवस की मंगलमय कामना।*

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