March 12, 2025

मथुरा : ठाकुर बांकेबिहारी के मंदिर में 10 मार्च से होगा होली का उल्लास, टेसू के फूलों से बने रंग में भक्त होंगे सरोबोर

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वृंदावन,मथुरा ! विश्वविख्यात ब्रज की लठामार होली की बात ही निराली है।इसमें हर चीज परंपरा के अनुसार होती है।बात चाहे हुरियारिनों की हो चाहे हुरियारों की दोनों ही द्वापर युग की परंपरा को आज भी बखूबी निभा रहे हैं।वही लट्ठ,वही ढाल वही पारंपरिक कपड़े सभी कृष्णकालीन परंपरा को जीवंत करते दिखाई पड़ते हैंपारंपरिक रूप से मंदिरों में होली खेलने के लिए टेसू (पलाश) के फूलों का रंग ही उपयोग में लाया जाता है,जो कृष्णकालीन परंपरा का संवाहक भी है।ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में भले ही रंगों की होली दस मार्च से शुरू होगी,लेकिन टेसू के फूलों को सुखाकर रंग बनाने के लिए अभी से सेवायतों ने तैयारी शुरू कर दी है।ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में होली के पर्व को प्राकृतिक रंगों के साथ ही मनाया जाता है।यह परंपरा द्वापरयुग से ही चली आ रही है,जिसे आज भी मंदिरों में निभाया जा रहा है।

ब्रज की होली की परंपरा को जीवंत करने के लिए टेसू के फूलों का रंग तैयार किया जा रहा है।प्राचीन काल से ही टेसू के फूलों का रंग होली में प्रयोग किया जाता रहा है।यह रंग न केवल प्राकृतिक और सुरक्षित है बल्कि त्वचा के लिए भी फायदेमंद है।टेसू के फूलों से बने रंग से त्वचा संबंधी बीमारियां भी दूर हो जाती हैं।ठाकुर बांकेबिहारीजी मंदिर सेवायत टेसू के फूलों से रंग बनाने में जुटे हैं।फूलों से रंग बनाने में लगे लोगों का कहना है कि पर्व को परंपरा और मर्यादा के साथ मनाने पर रिश्ते मजबूत होते हैं।टेसू के फूल से बने रंग मदमस्त करने वाली सुगंध के साथ वातावरण महका देते हैं।ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर सेवायत आचार्य गोपी गोस्वामी कहते हैं प्राचीन काल में जब रासायनिक रंग नहीं होते थे तब से ही टेसू के फूलों का रंग होली में प्रयोग में लाया जाता रहा है। इसलिए परंपरा का निर्वहन करने के लिए आज भी बांकेबिहारी समेत सभी मंदिरों में टेसू के फूलों का ही उपयोग होली खेलने के लिए होता है।

बता दें कि टेसू के फूलों को जमा कर छाया में सुखाया जा रहा है।होली के एक दिन पहले इन सूखे हुए फूलों को पानी में भिगोकर उबाला जाता है,जिससे चटक रंग तैयार हो जाता है।टेसू के फूलों का ये रंग अमृत से कम नहीं है। इससे त्वचा को शांति मिलती है।टेसू के रंग से त्वचा संबंधी बीमारियां भी दूर हो जाती हैं।इस रंग से कोई बीमारी नहीं होती है।बाजार में मिलने वाले रंग मशीनों और रसायनों से बनते हैं।इनके असंतुलन से समस्या भी पैदा हो सकती है।इसलिए मंदिरों में बाजार के रासायनिक रंगों का उपयोग अब तक नहीं हो पाया है।बता दें कि राधावल्लभ मंदिर में गुलाल उड़ रहा है।राधावल्लभ मंदिर में वसंत पंचमी से शुरू हुई होली में हर दिन भक्त सराबोर हो रहे हैं।मंदिर में दर्शन को आ रहे भक्तों पर सेवायत जब ठाकुरजी का प्रसादी गुलाल उड़ाते हैं तो माहौल उल्लास भरा हो जाता है।गुलाल के रंगों में सराबोर होकर श्रद्धालु होली के रसिया गाते हुए जमकर नृत्य कर रहे हैं।

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