March 12, 2025

रामचंद्र यादव, जिन्हें मिल्कीपुर में योगी आदित्यनाथ ने सौंपी थी सपाई वोटरों में सेंधमारी की जिम्मेदारी

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उत्तर प्रदेश की मिल्कीपुर विधानसभा सीट का उपचुनाव बीजेपी ने जीत लिया है. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उम्मीदवार चंद्रभानु पासवान ने इस सीट पर शानदार जीत हासिल की है. चंद्रभानु पासवान ने समाजवादी पार्टी (सपा) के उम्मीदवार अजीत प्रसाद को 61,000 से अधिक मतों से हराया है. मिल्कीपुर सीट पर भाजपा को तीसरी बार जीत मिली है ।इससे पहले 1991 और 2017 में जीत मिली और अब 2025 में चंद्रभानु पासवान ने सपा के गढ़ में भगवा परचम लहराने में सफलता हासिल की है। मिल्कीपुर सीट का गठन 1967 में हुआ था और 1969 में तत्कालीन जनसंघ हरिनाथ तिवारी विधायक चुने गये थे। इसके बाद 1974 से 1989 तक यह विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी का अभेद्य किला बन गया।1991 में राम लहर में मथुरा प्रसाद तिवारी ने भाजपा से जीत दर्ज की फिर 2012 तक यहां पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 2017 में मोदी लहर में भाजपा के बाबा गोरखनाथ विजयी रहे। यह अलग बात है कि इसके बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा के अवधेश प्रसाद ने बाबा को पराजित किया। 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा ने अवधेश प्रसाद को अपना उम्मीदवाबर बनाया था और वह जीत गये। तभी से भाजपा पर लगातार दबाव बनता जा रहा था कि किसी न सिकी प्रकार से यह सीट हर हाल में जीतकर दिखानी है और योगी जी की टीम ने यह काम कर दिखाया है।

5 फरवरी को दिल्ली में हुए विधानसभा चुनावों के साथ-साथ कई जगहों पर उप-चुनाव भी हुए थे। इनमें एक सीट थी उत्तर प्रदेश की मिल्कीपुर विधानसभा सीट, यह सीट अवधेश प्रसाद के इस्तीफे बाद खाली हुई थी। अवधेश प्रसाद इस समय फैजाबाद लोकसभा सीट से सपा सांसद हैं और अयोध्या भी इसी लोकसभा के अंतर्गत आता है। अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण के बाद हुए पहले लोकसभा चुनावों में इस क्षेत्र में बीजेपी की हार की खूब चर्चा हुई थी, अवधेश को सपा ने ट्रॉफी की तरह पेश किया और वे अखिलेश के साथ-साथ नज़र आने लगे थे। लोकसभा में विपक्ष की ओर अवधेश पहली पंक्ति में नज़र आन लगे। सपा को उम्मीद थी कि वे अवधेश के सहारे मिल्कीपुर विधानसभा को फिर से जीत लेंगे, इसलिए उनके बेटे अजीत प्रसाद को ही उम्मीदवार बना दिया गया।
बीजेपी के लिए फैजाबाद की हार बहुत बड़े झटके की तरह थी और अब पार्टी मिल्कीपुर के चुनाव को हर कीमत पर जीतना चाहती है। बीजेपी ने मिल्कीपुर चुनाव के लिए तैयारी फैजाबाद की हार के बाद से ही शुरू कर दी थी। बीजेपी की पहली प्राथमिकता इस सीट पर जातीय समीकरण को साधने की थी। इस सीट पर करीब 3.5 लाख मतदाता हैं जिनमें से ब्राह्मणों की संख्या करीब 60,000 है जो अधिकतर बीजेपी के समर्थक माने जाते हैं। साथ ही, इस सीट पर करीब 1.25 लाख दलित और 55,000 से अधिक यादव मतदाता हैं। दलितों में भी करीब 40% वोट पासी बिरादरी के हैं और बीजेपी ने चंद्रभानु पासवान को टिकट दिया, पासवान इसी पासी बिरादरी से आते हैं। इसके अलावा यादव वोट बैंक को साधने की ज़िम्मेदारी दी गई थी रामचंद्र यादव को।

कौन हैं रामचंद्र यादव?

रामचंद्र यादव, मिल्कीपुर के पड़ोस की विधानसभा रुदौली से विधायक हैं और उन्हें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का करीबी नेता माना जाता है। 2012 में सपा की लहर में रामचंद्र यादव ने रुदौली विधानसभा सीट से पहली बार जीत दर्ज की थी और वे लगातार तीसरी बार यहां से विधायक हैं। रामचंद्र मूल रूप से मिल्कीपुर विधानसभा के घटौली गांव से आते हैं और यादव मतदाताओं पर उनका अच्छा-खासा प्रभाव है। साथ ही, रामचंद्र यादव को हिंदुत्व का भी बड़ा चेहरा माना जाता है।

2013 में जब विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने अयोध्या में 84 कोसी परिक्रमा का ऐलान किया था तो सपा सरकार ने उस पर रोक लगाते हुए अशोक सिंघल समेत कई दिग्गज नेताओं को गिरफ्तार किया था। इस दौरान रामचंद्र यादव भी इस यात्रा में शामिल थे और उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया था। क्षेत्र के पंचायत चुनाव में भी उनका खासा दखल रहता है और कई पंचायत सदस्य उनके समर्थन से ही चुनाव जीतकर आते रहे हैं।

मिल्कीपुर में रामचंद्र यादव का प्रभाव

सीएम योगी द्वारा ज़िम्मेदारी सौंपे जाने के बाद से ही रामचंद्र यादव इस उप-चुनाव के लिए मिल्कीपुर में डटे रहे।। वे लगातार यादव बहुल इलाकों में घूमते रहे और उन्होंने चुनाव से पहले स्थानीय स्तर के कई यादव नेताओं को बीजेपी से भी जोड़ा था। इतना ही नहीं वे मुलायम सिंह की बहू अपर्णा यादव को लेकर भी कई यादव बहुल इलाकों में घूमते भी नज़र आए थे । रामचंद्र यादव ने सपा के कोर वोट बैंक माने जाने वाले यादव वोट को काफी हद तक बीजेपी में लाने में सफलता हासिल की है। यादव समाज में पैठ के साथ-साथ रामचंद्र यादव की मुस्लिम बहुल और अनुसूचित जाति बहुल दर्जनभर गांवों में अच्छी पकड़ मानी जाती है।

मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर उप-चुनाव में करीब 65.25% वोटिंग हुई । यह पिछले चुनाव से करीब 5% अधिक है और इसे बीजेपी की पक्ष में हवा से जोड़कर देखा जा रहा था । 8 फरवरी को मिले नतीजो से ये स्पष्ट है कि बीजेपी रूठे हुए नेताओं को मनाने में सफल रही और पार्टी को अपने उम्मीदवार की साफ छवि का भी लाभ मिला है । योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह इस चुनाव के लिए तैयारी की वो अखिलेश यादव के सामने कहीं अधिक मज़बूत नज़र आई है। अखिलेश और सपा ने चुनावों में जिस तरह धांधली की शिकायत की है उसे भी उनकी हताशा से जोड़कर देखा जा रहा है।

मिल्कीपुर में अबकी बार संघ ने भी काम संभाला और मजबूत किलेबंदी के साथ हर बूथ पर संघ के पदाधिकारी मोर्चा पर डटे रहे। इसका असर मतदान के दिन दिखा भी। संघ ने मतदाता को मतदान केंद्र तक पहुंचाने में पर्याप्त श्रम किया। मिल्कीपुर जीत से भाजपा का विश्वास बढ़ा है, योगी जी की प्रतिष्ठा बढ़ी है और उनके नारे की लोकप्रियता भी बढ़ रही है। महाकुंभ- 2025 के समापन के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री येगी आदित्यनाथ जी का एक नया अवतार देखने को मिल सकता है। हिंदुत्व की राजनीति में काशी, मथुरा के साथ संभल का अध्याय भी जुड़ चुका है।

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