यूपी: शाहजहांपुर में काली पन्नी और तिरपाल से ढंक दिए गए सभी मस्जिद-मजार, जानें क्या है वजह?

तिरपाल से ढंके गए मस्जिद और मजार
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में होली को लेकर मस्जिदों और मजारों को तिरपाल से ढंक दिया गया है। शाहजहांपुर में होली के दिन लाट साहब का जुलूस निकाला जाता है और इसको लेकर शहर ही करीब 67 मस्जिद-मजारों को तिरपाल से ढंका जा रहा है। शहर में निकलने वाले परंपराग़त लाट साहब के 10 किलोमीटर मार्ग में पड़ने वाली सभी मस्जिदों / मजारों को काली पन्नी और तिरपाल से ढंक दिया गया है ताकि होली का रंग न पड़ सके।
क्यों ढंकते हैं मस्जिदों और मजारों को
शहर में सालों से परंपरा है लाट साहब का जुलूस निकलने की और इस दौरान मस्जिदों को इसी तरह ढंकने की। इसे लेकर प्रशासन का कहना है सब कुछ पुराने नियमों के मुताबिक है, कुछ भी नया नही है।लाट साहब का जुलूस शहर कोतवाली मे आकर ख़त्म होता है और यहां थाने के अंदर शाहजहांपुर की सबसे पुरानी मस्जिद है। इस बारे में शाहजहांपुर के एसपी राजेश एस ने बताया कि पीस कमिटी से मीटिंग हो चुकी है, सब कुछ पुरानी परंपरा की ही तरह हो रहा है। यहां के लोग मस्जिदों पर अपनी इच्छा से पन्नी डालते हैं और तिरपाल से ढंक देते हैं और यही हर साल की परंपरा है। इलाके में माहौल अच्छा रहे इसके लिए पर्याप्त पुलिस फोर्स मौजूद है, हुड़दंगियों पर नज़र रखने के लिए विशेष इंतज़ाम हर साल की तरह किये गए हैं।
कौन थे लाट साहब, क्यों निकलता है जुलूस
दरअसल, यहां लाट साहब का मतलब अंग्रेजों के शासन के क्रूर अफसर से है, जिनके विरोध में हर साल होली में शाहजहांपुर में जुलूस निकाला जाता है। इस जुलूस के लिए पहले एक युवक को लाट साहब के रूप में चुना जाता है और उसका चेहरा ढंक कर उसे जूते की माला पहनाकर बैलगाड़ी पर बैठाकर तय मार्ग पर घुमाया जाता है। इस दौरान लाट साहब पर अबीर-गुलाल के साथ जूते-चप्पल भी फेंके जाते हैं।शाहजहांपुर में लाट साहब के दो जुलूस निकाले जाते हैं। जिसको छोटे और बड़े लाट साहब के नाम से जाना जाता है। छोटे लाट साहब का जुलूस सरायकाईयां मुहल्ले से निकाला जाता है। शहर के कई क्षेत्रों से होते हुए यह जुलूस वापस सरायकाईयां पुलिस चौकी पर समाप्त कर दिया जाता है।
